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एक नई महाशक्ति का उदय Rise of a new superpower




क्या 2 महाशक्तियां आपस में टकराएगी ?
जैसा कि हमें पता है 1991 के USSR के विघटन के बाद रूस और कई छोटे देश उभर के आए और रूस इतना ताकतवर नहीं है की  आज के दौर पर कि अमेरिका का मुकाबला कर सके , क्योंकि आज का मुकाबला सिर्फ हथियारों तक सीमित नहीं रह गए हैं आज का मुकाबला रह गया है  "अर्थव्यवस्था " तक भी , और अन्य क्षेत्रों में भी जो विकास कर गया वो सबसे आगे निकल गया , तो वो दूसरी महाशक्ति कौन है !
वो चीन है , चीन ने विस्तारवादी नीति को ही बढ़ावा देना शुरू किया है शुरू से लेकर अब तक चीन ने अनेकों उपमहाद्वीप में कई देशों की सीमाओं में छद्म युद्ध से कई सारा हिस्सा हथिया लिया है , और कई छोटे-छोटे देशों को अपने कर्ज के जाल से डुबो दिया है , वे लगभग चीन के गुलाम हो चुके हैं !

अब हम बात करते हैं अमेरिका की जिसने खुद के द्वारा कई मोर्चों पर युद्ध की स्थिति उत्पन्न की , एवं उसे खत्म करने के लिए भी अमेरिका द्वारा ही कदम उठाए गए ,
अमेरिका की नीति यही  रही है हमेशा से ईसाई धर्म को ना मानने वाले देशों में या तो घरेलू तरीके से युद्ध उत्पन्न किया जाए , या पड़ोसी देशों से युद्ध करवा दिया जाए इससे उसे हथियार बेचने में आसानी होती थी चाहे वो दोनों ही पक्ष के लोग उस देश की सरकार एवं विरोधी ही खरीद क्यों ना रहे हो,

कुछ उदाहरण मात्र में आपके सामने रखता हूं जैसे अफगानिस्तान का युद्ध खाड़ी देशों के युद्ध जिन्हें हम तेल से भरपूर देश भी बोलते हैं , आखिर इसके पीछे मकसद क्या था अमेरिका का तो अमेरिका चाहता है कि उसके सामने कोई भी देश चाहे छोटा से छोटा क्यों ना हो या बड़े से बड़ा उसके सामने सर झुकाए वो किसी भी देश को अपने से आगे नहीं निकलने देना चाहता , पर चीन ने एक चाल चली , चीन दिखावा करता गया कि वो अमेरिका के साथ हैं शुरू से चाहे अमेरिका कोई भी निर्णय क्यों ना ले रहा हो विश्वभर में जब अमेरिका खाड़ी देशों में व्यस्त था तब चीन ने अपने व्यापार नीति को बढ़ावा देना शुरू कर दिया , कई देशों की कंपनियों को अपने देश मे व्यापार करने का मौका दिया कम लागत वाले मजदूर मिलने से उन कंपनियों को भी बहुत अच्छा मुनाफा होने लगा जिससे कई कंपनियों का और आना हुआ , और धीरे-धीरे करके सब के सब चीन के चंगुल में फंसते चले गए , 

चीन चाहता भी यही था कि दुनिया का ज्यादा व्यापार उसके हिस्से में रहे जिससे वो नियंत्रित कर सके किसी भी देश में किसी सामान की जरूरत को आज अगर मैं कहूं कि कई देश चीन पर निर्भर है अपनी अर्थव्यवस्था चलाने के लिए तो आपको हैरानी नहीं होगी , चीन के द्वारा जो सामान कई देशों को बेचा जाता है वो अपनी अर्थव्यवस्था में उसे बेचकर अच्छी कमाई करते हैं अब दूसरी और  बात कर लेते हैं , अमेरिका की अमेरिका जो भी काम करता है उसमें अपना फायदा सबसे पहले देखता है , इसी वजह से कई देश उसके मित्र होने का दिखावा करते हैं क्योंकि उन्हें भी पता है कि अमेरिका के खिलाफ जाने पर किसी भी देश का साथ उन्हें नहीं मिलेगा , जिससे कि उनके देश की आर्थिक स्थिति और खराब हो जाएगी , अमेरिका में तेल काफी ज्यादा उत्पादित किया जाता है और अमेरिका चाहता है कि यह तेल वो दुनिया भर में बेचे परंतु अमेरिका के रास्ते मैं दो मुख्य परेशानी है , पहली रूस देश और दूसरा खाड़ी देश 
रूस पर हमला करना अमेरिका के लिए तीसरे विश्वयुद्ध की शुरुआत करने जैसा हो इसीलिए अमेरिका ने खाड़ी देशों को चुना , जो छोटे-छोटे मुस्लिम देशों से भरा पड़ा समूह है इन देशों में राजशाही राज हुआ करता था और आज भी है , 
जो चुनिंदा मित्र देश थे खाड़ी में और अमेरिका से सामान खरीदते थे उन पर अमेरिका ने आंच नहीं आने दी , परंतु जो देश अमेरिका से संबंध नहीं रखते थे उन देशों में अमेरिका ने भरपूर तबाही मचाई,  सत्ता परिवर्तन एक मुख्य वजह थी जिससे कि अमेरिका अपने चुनिंदा नुमायने को वहां पर बिठा कर अपना काम करवा सके 

दूसरी ओर चीन अमेरिका के किए गए कार्यों को नजर अंदाज करने की पूर्ण भूमिका में था, और अमेरिका ने उसे इसका इनाम भी दिया,  एक तरफ अमेरिका व्यस्त था अपने खाड़ी देशों के युद्ध को पूर्ण करने में और दूसरी और चीन का मकसद था एकमात्र अमेरिका की जगह लेना और हुआ भी कुछ ऐसे ही , सस्ते मजदूरों की वजह से कई कंपनियों का वहां व्यापार शुरू हो गया अमेरिका यूरोप और कई अन्य बड़े देशों से बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अपना उत्पादन चीन में करना शुरू कर दिया इसका असर यह हुआ कि आज के दौर में इन बड़े-बड़े देशों में बेरोजगारों की संख्या भी अच्छी खासी है,  और आज की स्थिति यह है कि अमेरिका और चीन यह दो अलग-अलग गुट बन चुके हैं , कुछ देश चीन का समर्थन करते हैं और कुछ अमेरिका का,  पर हमारा देश और ऐसे कई अन्य देश भी हैं जो तीसरे मोर्चे की भी अगुवाई करता है .


आज के दौर में जब चीन इतना शक्तिशाली हो चुका है तो क्या अमेरिका उसे कोई सजा दे सकता है, शायद से हां शायद से नहीं क्योंकि अमेरिका एक डेमोक्रेटिक देश है और हर नए राष्ट्रपति के नए विचार होते हैं , पर चीन में ऐसा नहीं है एक सरकार राज वहां कायम है कोई चुनाव नहीं अमेरिका जो कई देशों को आगे बढ़ने से रोकता आ रहा था उसने चीन को इतना आगे क्यों बढ़ जाने दिया, उसकी वजह है अमेरिका का भारत से खराब रिश्ते होना , जो कि उस दौर पर भी चरम पर थे भारत का USSR के प्रति झुकाव , अमेरिका को पसंद नहीं था और अमेरिका चाहता था कि जितने भी बड़े देश हैं वह सिर्फ एक ही महाशक्ति को माने , यहां पर आपके मन में एक सवाल उठता होगा कि क्या चीन अमेरिका को पछाड़ सकता है ?
चीन की विस्तारवादी नीति बहुत कारगर साबित हुई है, अब जब कुछ सालों में अमेरिका को समझ में आया है चीन एक बहुत बड़ा खतरा हो सकता है विश्व के लिए तब अमेरिका ने भारत और ऐसे कई अन्य देशों से अच्छे संबंध बनाने शुरू कर दिए , अमेरिका एक नाम मात्र मित्र है जिन देशों के साथ उसने संधि की है सिर्फ उन्हीं के हितों की रक्षा करना अमेरिका जानता है , चीन को हरा पाना आज के दौर में अमेरिका के लिए आसान काम नहीं है क्योंकि आज के दौर में कई छोटे देश ऐसे हैं जो चीन से निर्भर हैं,  उनके देश में जो भी कार्य हो रहा है चीन के द्वारा दिए गए कर्ज से हो रहे हैं!

 मैं यहां सिर्फ दो छवियां प्रस्तुत करना चाहूंगा , एक वह देश जो लगभग कई सालों से लगातार दुनिया को छोटे-छोटे युद्धों की वजह से विकास नहीं करने दे रहा "ईरान" ,"इराक" और ऐसे कई अन्य छोटे देश हैं जो इस महाशक्ति के सामने हार चुके हैं इनके द्वारा संपूर्ण विश्व में तेल सस्ते दामों में बेचा जाता था,  वेनेजुएला एक ऐसा देश है जिसको अमेरिका द्वारा दबा दिया गया और आज वह तेल किसी भी देश को नहीं बेच सकता ऐसी ही स्थिति ईरान और इराक की भी है ,चीन के द्वारा ईरान की मदद करना अमेरिका को पसंद नहीं आया, और उसके बाद कोरोना संक्रमण काल जिससे अमेरिका और ज्यादा क्रोधित हो चुका है चीन के प्रति, 
यहां दूसरी छवि है चीन की जो हमेशा से यह सोचता रहा है कि वह दूसरे देशों के बाजार को खत्म कर देगा, और वहां सिर्फ चीन का उत्पाद ही बिकेगा जिससे चीन को भरपूर लाभ होगाऔर दूसरे देश चीन पर निर्भर रहेंगे तो उसके खिलाफ कोई बोलेगा भी नहीं , आखिर में मेरा यही मानना है यह दोनों देश अपने अपने तरीके से महाशक्ति का दर्जा हासिल करना चाहते हैं , अमेरिका पुनः अपने आपको वहीं स्थापित करना चाहता है जहां पर आज चीन अधिकार जमा रहा है !!


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