मेरी लाश में भी वही बात होगी , जो दुसरो को जलाने के बाद होगी .
चिंगारी भड़क उठेगी जिस्म जल जाएगा ,
हर बुराई अच्छाई मन में दबा जाऊंगा .
उठेगी जब हवा , उडेगा जब धुंआ आसमान की ऊंचाई तक
हर किसी की साँसों में मेरा कतरा कतरा बहेगा
जलते हुए अंगारो की गर्मी से तपेगा शरीर
हड्डियों का ढांचा होगा राख में तब्दील
जब बनेगी राख हवा के साथ कुछ उड़ जायेगी
और कुछ पानी में बहकर अस्तित्व को अलविदा कह जायेगी
पहचान बनानी पड़ती है पहचान चुराई नहीं जाती
बगैर पहचान के आपकी जिंदगी बदल नहीं पाती
जिन्दा रहोगे तो सिर्फ अपनो को ही पाओगे
पर जलते हुए शरीर को देखने अनजान भी आएंगे
नाम सिर्फ नाम नहीं एक पहचान है
इस पहचान के साथ जिए , इसी पहचान से मरना समान है
मरते हुए जिस्म पे जुल्म ना करना
आग काम पड जाए और जिस्म वही पड़ा पड़ा सड़ जाए
आत्मा शरीर मुझे नहीं पता दोनों का अंत साथ में है या नहीं
पर इस जीवन का अंत समय हम अपनी उम्र से ही पता कर लेते है।
जीवन मृत्यु के चक्र में सबका अंत आना है, आप यह न सोचे कि आप अमर हैं , मैंने इस कविता के माध्यम से आपको यह बताने की कोशिश की है हम समाज में सिर्फ अगर जीने मात्र के लिए जीवन देंगे, तो हमारा जीवन व्यर्थ चला जाएगा हमेशा उन असमर्थ लोग की मदद करो जो अपने जीवन में कई कठिनाइयों से गुजर रहे हैं, आपकी पहचान इन्हीं लोगों से बनती है आज के दौर में पहचान बनाना आसान है पर उस पहचान के साथ जीवन भर टिके रहना आसान बात नहीं है, आपकी नियत बदल जाएगी और आपकी सोच भी क्योंकि समाज में कोई आप जैसा नहीं होगा उस वक्त और आप उन लोगों में ढलने की कोशिश करेंगे !
ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे धन्यवाद
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंthanks friend
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