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गोदी मीडिया आज की पहचान Dock media today identity



ये गोदी मीडिया क्या है ? कई लोग इसे जानते हैं पर समझ नहीं पाते , गोदी मीडिया की कई परिभाषा है कुछ न्यूज़ चैनल सरकार से डरते हैं , और कुछ तलवे चाटते रहते हैं सोशल मीडिया में इनके चेहरे आपने देखे होंगे, ये सरकार से एक सवाल तो वो पूछने हिमाकत नहीं कर सकते ऊपर से उस विपक्ष से सवाल पूछते हैं जो बेहद कमजोर हो चुकी है,  
आप हम सब की मानसिकता को ये बदलना चाहते हैं, ये चाहते हैं कि हम वह सोचे जो इनके द्वारा दिखाया जाता है , 

एक चैनल तो वो सुबह से शाम तक सरकार की भक्ति में ही लीन रहता है, उस चैनल को अगर आप थोड़ी देर टीवी पे खोल कर बैठ जाए तो वो आप महसूस करेंगे कि आपके अंदर कट्टरता भरी जा रही है , न्यूज़ पढ़ने का प्रचलन उसी चैनल ने सबसे ज्यादा बदला है किस तरीके से लोगों के अंदर गुस्सा दुर्भावना हिंसा एवं कट्टरता जगानी है वह आप देख सकते हैं ,
आजकल जो भी चैनल आप देखेंगे न्यूज़ में वह सिर्फ और सिर्फ एक तरह से तोता बन कर रह गया है , गोदी मीडिया का अर्थ ही है गोद में मीडिया आप जो चाहे वह दिखा सकते हैं , अमीर घरानों के द्वारा खरीदे गए न्यूज़ चैनल आपको क्या लगता है आम आदमी के मुद्दे दिखाएंगे , ये सिर्फ और सिर्फ पैसों पर जीते हैं आजकल वह मुद्दे कहीं खो से गए हैं सरकार की विफलताओं को नजरअंदाज किया जा रहा है..... क्यों ?
 क्योंकि जनता को ये बताया जाना चाहिए की आपके पास कोई विकल्प नहीं है, आपको इसी सरकार को दोबारा से चुनकर जिताना है, भले ही इस सरकार में कितने ही लोग दागदार छवि के हो अपराधी हो पर आप का प्रधानमंत्री तो वो साफ छवि का है ना , 
ये वही बात हो गई किसी पुजारी के पीछे अपराधी छुपे बैठे हैं, वह पुजारी भी जानता है कि ये अपराधी है और वह अपराधी भी जानते हैं कि यह पुजारी है इससे आप मेरा मतलब समझ सकते हैं ,गोदी मीडिया को बस उस पुजारी की छवि दिखानी है वह यह नहीं मानते 130 करोड़ की आबादी में हजारों लोग बाढ़ से मर रहे हैं , हजारों लोगों के घर टूट चुके हैं , लाखों लोग संक्रमण से पीड़ित हो चुके हैं , और करोड़ों लोगों को आने वाले समय में भुखमरी से खतरा है , वह यह नहीं बताएंगे कि आने वाले समय में क्या स्थिति होने वाली है वह सिर्फ आज देख रहे हैं और बीते हुए कल को दोहरा रहे हैं , रोज कोई ना कोई बहस चलती है जो लोग इन बहस को देखते हैं मैं उन्हें सलाम करता हूं , क्योंकि वह सारे निकम्मे है उन्हें इस बहस से कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि आख़िर में जब नतीजा निकलता है उस बहस का वह शुरुआत के उसी सवाल पर आकर टिक जाता है जहां से वह बहस शुरू हुई थी , मैं भी पहले खूब राजनीति की खबरें देखता था और मैं कई लोगों से प्रेरित भी था परिवर्तन की राजनीति सही है पर अगर काम ही ना हो और इल्जाम पुरानी सरकारों पर लगाया जाए तो वो क्या वह सरकार सही है , आप सवाल पूछिए उनसे वह यह कहेंगे कि पहले किसी ने किया है क्या ? कम से कम हमने शुरू तो वो किया है, आप सवाल पूछेंगे तो वो आपको  इतिहास की याद दिलाएंगे , आप सवाल पूछेंगे वह आपको अपना इतिहास बताएंगे , आप फिर से सवाल पूछेंगे वह आपको कुछ नहीं बताएंगे , देश की राजनीति की स्थिति यही है शुरुआत में नई सरकार के आने के बाद हर कोई यह समझ बैठा था की विकास की राजनीति में विकास भी होता होगा पर विकास की परिभाषा  कभी जानी नहीं हमने ,

आज तक विकास मॉडल ही नहीं देखा है , मैं फिर उस ओर ध्यान ले जाना चाहूंगा आपका वह गोदी मीडिया क्या कर रहा है , सुबह से शाम तक सारी खबरों का विश्लेषण करेंगे नाटकीय रूप में , आजकल खबरें बिल्कुल नहीं है न्यूज़ चैनल में , सिर्फ अलग-अलग कार्यक्रम का समय तय रहता है जैसे कोई टीवी सीरियल चल रहे हो , देश के युवाओं किसानों मजदूरों व्यापारियों ऐसे कई लोग हैं , जिनके बारे में कोई भी अपनी न्यूज़ चैनल में जगह नहीं देना चाहता, मेरा तो यह मानना है जितने भी चैनल इस गोदी मीडिया में फंसे हुए हैं और इनको पहचानना आपके लिए मुश्किल भी नहीं है , बस अगर आपने यह ब्लॉग  पूरा पढ़ लिया हो तो अगले दिन सुबह प्रातः 8:00 बजे से शाम के 8:00 बजे तक , जितनी भी बार आप न्यूज़ चैनल का रुख करेंगे आप देखेंगे कि लगभग  सारे न्यूज़ चैनल्स मैं आपको धर्म रूपी खबरें ,कट्टरता से परोसी हुई खबरें, किसी धर्म विशेष के  ऊपर टिप्पणी करते हुए खबरें , जाति के ऊपर खबरें , पाकिस्तान के ऊपर ख़बरें,  चीन के ऊपर खबरें, उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन की खबरें , नेताओं की टिप्पणियां , और खासकर किसी राज्य के  चुनाव के लिए नेताओं द्वारा अपनी पार्टी का  विज्ञापन,  आप समझ जाइए अब यह खबरें आपके हित के लिए नहीं है, रोजाना एक ही खबर को दिखाने से क्या मिलेगा ?


"मैं बताता हूं" पहली बात तो यह कि यह मीडिया चैनल्स सरकार की छवि को अच्छा दिखाने की पूर्ण कोशिश कर रहे हैं,  अगर सरकार की छवि अच्छी है तो वह अपने आप ही जाहिर हो जाएगी , ना की  जो काम सरकार ने किए हैं जो निर्णय लिए हैं क्या वह जमीनी हकीकत में काम कर रहे हैं हमें नहीं पता चलेगा ऐसे , और यह जाहिर कैसे करना चाहते हैं चाहे वो पक्ष में हो या विपक्ष में , मीडिया स्पोक्सपर्सन पार्टियों ने ऐसे रखे हुए हैं जैसे इतिहास की लड़ाई लड़ी जा रही हो,  यहां वर्तमान और भविष्य की बात नहीं होती , आप कोई भी न्यूज़ मैं डिबेट देख लीजिए आपको एहसास हो जाएगा यह काम करना नहीं चाहते,  बस आराम करना चाहते हैं, आराम तब तक जब तक कोई विपक्ष इनको जगा ना दे,  वह भी आने वाले चुनावों तक

 चुनाव कभी-कभी ऐसा नहीं लगता आपको जैसे हम सिर्फ नाम मात्र के वोट  रह गए है, हमें वोट देने के लिए बरगलाया जाता है आप लोगों के पास यह अधिकार भी है कि आप नोटा दबा सके, परंतु आपने कई बार सुना होगा कि नोटा की कोई अहमियत नहीं , क्योंकि आप को फिर से विकल्प की ओर मोड़ा जा रहा है, और विकल्प आपके पास क्या है?  कुछ नहीं, आज के दौर में विकल्प की परिभाषा तो सिर्फ यही है कि आप अपना वोट अपनी मर्जी से नहीं दे रहे हैं,  यह किसी न किसी तरीके से आप लोग के दिमाग में नहीं गई है बात, हमें कई तरीकों से यह समझाया जा रहा है "जो है वह सही है" पर आपको इसका समर्थन करना ही पड़ेगा, अगर आप नहीं करते हैं तो आप देशद्रोही होंगे, तो ऐसे विकल्प आपके पास अगर होंगे आप क्या करेंगे? 
आपके पास दो विकल्प हैं पहला समर्थन करें दूसरा देशद्रोही बने , न्यूज़ चैनल की आप कवरेज देखिए, आज के दौर पर इतिहास के पन्ने टटोल टटोल के  खोज रहे हैं, और पुरानी सरकारों को उनकी गलतियां बता रहे हैं , तो जो  आज की सरकार है जब वह भी विपक्ष  में जाएगी तो तब सरकार से सवाल पूछेगी मीडिया,  ऐसे कई सारे सवाल उठते हैं !

गोदी मीडिया कोई छोटी मोटी चीज नहीं है, इनकी वजह से कई लोगों को न्याय तक नहीं मिल पाता , क्योंकि जब किसी गरीब  बेबस की आवाज सरकार नहीं सुनती है तो उनकी आवाज यह मीडिया उठाती है , पर आज के दौर पर यह मीडिया ही गोदी  हो चुकी है , 
पर हमारे पास विकल्प है "जिससे आप यह ब्लॉग  पढ़ रहे हैं अभी तक इसमें किसी तरह का कोई कंट्रोल किसी का नहीं है" , तो आप बेझिझक रहे , न्यूज़ चैनल से दूर रहे, अपनी बात सोशल मीडिया में कहें, और अगले चुनाव आने तक इस गोदी मीडिया को भी सहते रहे !!


मैं किसी का भी विरोध नहीं करता हूं पर जब खबरें ही रोजाना ऐसी आती रहे और यह प्रचलन तो लगभग 4 साल से ज्यादा हो चुका है तब से हो गया है तो हम करे तो करे क्या वैसे ही गोदी मीडिया की मजबूरी है चंद पैसों में ईमान बिक जाए वह भी जरूरी है !!



ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे धन्यवाद 




 

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