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उधार एक बेरोज़गार का Lending to an unemployed





इस सरकार की भी क्या मजबूरी थी, 
जो मुझसे उधार लेने पर मजबूर हो गई 
मैं भी तो एक बेरोजगार था, 
आखिर मुझसे क्या भूल हो गई,

भूल तो बस यह थी कि सरकारी नौकरी की आस थी
तैयारी बहुत खास थी, वर्षों से मुझे आज थी
उम्मीद की आस लगाए वर्षों से बैठा था मैं 
सरकार विरोधी आंदोलन मैं, चुप रहता था मैं 
मुझे पता था मेरी आवाज आज भी कोई उठाएगा 
सड़कों पर आएगा, सरकार को याद दिलाएगा 

पर बदल गया है आज का युवा, हिंदू मुस्लिम की छांव में 
भेदभाव का पानी पीकर, उलझ गया है राहों में 
आज उसकी आवाज में बन गया हूं 
बेरोजगारी का दर्द मैं भी समझ गया हूं 

तैयारी तो होती रहेगी, पर देश ना बदला तो हम बदल जाएंगे
और सोच में कट्टरता भरी रहेगी, 
मुझे सिर्फ रोजगार चाहिए और कुछ नहीं मांगता हूं, 
छल करना सरकारों की आदत है, यह मैं भी जानता हूं 

रिक्तियां पदों पर भेजा, एक जाल है 
बेरोजगार फंसता है, धांधली है और सवाल है 
धांधली के नाम पर हर साल छल करते हो 
रिक्तियां वही रहे, बस जगह दिन समय बदल देते हो 

एक बेरोजगार सब समझता है 
वह बस तैयारियों में उलझा रहे 
इन नेताओं का साल कटता रहे 

चुनाव आने पर ये फिर से दोहराएंगे, 
आप बेरोजगार है तो हम क्या करें यह बताएंगे 
रिक्तियां हर साल आ रही हैं, आप सिर्फ फॉर्म भरे 
जिंदगी के कुछ साल यही बर्बाद करें 

मेरा उधार उधार ही रह गया, 
उधार लेने वाला भी मुझे उधार नहीं 
सिर्फ आश्वासन ही दे गया !!

सरकार आपकी सुन्ना नही चाहती, आप आवाज़ उठाओगे ये आश्वासन देकर आपको शांत कर देंगे, और गोदी मीडिया ये सरकार के गलत निर्णय की व्याख्या नही करता आप मेरा पिछला ब्लॉग जरूर पढ़ें, कैसे ये आपको नौकरी के झांसे में फंसाकर बेरोज़गार रखना चाहते है।


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