काल के आगोश में समाए हुए,
नर्क में बुरी आत्माओं को बसाए हुए
सजा अब तय हो चुकी है, बुरे कर्मों का हिसाब होगा
तय हो चुका है कौन यहां राजा और कौन यहां दास होगा
कई बार मौत होती है फिर से जिंदा होते हैं, बिलखते रोते हैं
अपने किए हुए बुरे कर्मों को यह कोसते हैं
काश मनुष्य देख सकता क्या होता है इस नरक में,
अगर सही को गलत, और
गलत को सही किया है इसने जीवन में
पता होना चाहिए उसे भी किस सजा का हकदार है वह नरक में
कितनी परेशानियों का गुनहगार है वह अपने कर्म से
हर एक झूठ सच का हिसाब मौजूद है यहां
छुपा ना सके गुनहगार अपने गुनाह
बुरे कर्मों का हिसाब सजा बेहिसाब
रोती, बिलखती, चिल्लाती आत्माओं की चीख-पुकार
गुनहगार आत्माओं पर हर एक वार
पश्चाताप की अग्नि में जलने के सिवा कुछ नहीं बचा है
एक जीवन था इनका बुरे कर्मों से,
धरती पर पीड़ितों की यादों से यह भरा पड़ा है
उन सभी पीड़ितों की पीड़ा का भी हिसाब होगा
प्रताड़ित करने वाले की आत्मा को नर्क में
उस पीड़ा का एहसास होगा
जो नर्क के द्वार पर खड़े हैं, डरे हुए हैं आवाजों के शोर से
अंदर मची है चीख-पुकार दरवाजे पर हैं ढेरों लाशों के अंबार
जिनमें आत्माओं को सजा दी जाती है,
महसूस हो सके उन्हें भी, उनकी दी हुई प्रताड़ना
जो दूसरों को दी जाती है
ना भाग सके ना झूठ बोल सके, जो बचा है मन में
वो सिर्फ कर्मों का पश्चाताप कर सके
इस नर्क से कोई नहीं भाग सकता
इनके बुरे कर्मों का हिसाब यहीं पे होगा !!
वे सभी व्यक्ति जो जीवन में अपने बुरे कर्मों से अपने आप को छुपाते आ रहे हैं और समाज में बचते आ रहे हैं, मौत के बाद उन सभी के कर्मों का हिसाब तय किया जाता है नर्क में, यह कविता अंतिम न्याय व्यवस्था के उस दूसरे पहलू को दर्शाती है जिसमें वह व्यक्ति जो बुरे कर्म करके नरक की अंतहीन सजा में फंस चुका है, से दिखाई दे रहा है किस तरीके से उसे उसके कर्मों के हिसाब से दंडित किया जाएगा, पहले खाली लाश के अंदर उसे अकेला जाएगा और उस लाश को इतना तड़पाया जाएगा कि उसकी आत्मा को वो दर्द महसूस हो सके जो उसने अपने जीवन में दूसरों को दिए हैं,
बुरे कर्म जो करते हैं उन्हें नहीं पता कि वह जो कर रहे हैं वह किस लिए कर रहे हैं, अगर वे सिर्फ पैसे और लालच के पीछे भाग रहे हैं तो उन्हें जान लेना चाहिए कि उनकी भी उम्र की सीमा कहीं ना कहीं खत्म हो ही जाएगी, और यह अगला इंसानी जन्म जैसा अगर कुछ होता भी है तो उनकी सजा ऐसी तय की जाएगी कि वह अगला इंसानी जन्म ना ले सके, डरिए अपने आप से क्योंकि जो आप झूठ बोल रहे हैं उनको भी आपके कर्म के साथ तय करते हैं,
अगर आपको यह कविता पसंद आई हो और इससे पहले शुरुआत की कविता पढ़ने के लिए कृपया अंतिम न्याय व्यवस्था पर जरूर क्लिक करें
धन्यवाद
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