अब जो 75% वाला छात्र है वह यह कह रहा है कि मेरे प्रतिशत तो 40% वाले से कहीं ज्यादा है, और वह अपनी सफलता का गुणगान किया जा रहा है, वह भूल चुका है कि जो छात्र 95% पर बैठा है वह उन दोनों से कहीं ज्यादा p है और वह उन दोनों से कहीं ज्यादा ताकतवर है,
यहां मैं आपको बता दूं कि 40% वाला छात्र यहां पाकिस्तान है 75% वाला छात्र यहां भारत है और 100% वाला छात्र यहां अमेरिका है, यहां में भारत को 100% कह सकता हूं परंतु यह तभी मुमकिन है जब हम आने वाले भविष्य में अपनी आर्थिक और सुरक्षा के मामले में विश्व में सबसे आगे हो,
हमारे देश के नौजवान पढ़े-लिखे युवाओं को बस यही समझाया जाता है कि हम पाकिस्तान से कितने बेहतर हैं, हमें यह नहीं बताया जाता कि हम अमेरिका से कितने बेहतर नहीं है, और इसी के इर्द-गिर्द घूमती है पूरी राजनीति, अगर आप अभी नहीं समझे तो अपने सोशल मीडिया अकाउंट खोल लीजिए अंधभक्तों की भक्ति वहां चरम पर भरी होगी, खासकर इनका एक सबसे बड़ा अड्डा है फेसबुक जो प्रतिबंध नहीं लगाता किसी भी फेक न्यूज़ को, दूसरे प्लेटफार्म भी है पर वे इतने कारगर नहीं है जितना फेसबुक है, क्योंकि देश की और विश्व की सबसे ज्यादा आबादी फेसबुक में ही मौजूद है, और फेसबुक ने भी इस एक अच्छा आय का जरिया बना लिया है, कुछ समय पहले आपको पता होगा कि फेसबुक के खिलाफ हेट स्पीच पर कई अमेरिकी कंपनियों ने अपने विज्ञापन फेसबुक को देने बंद कर दिए थे, पर उनके लिए भी यह दिक्कत यह है कि अगर वे इसका बहिष्कार करते हैं तो उनका जो प्रतिद्वंदी है वह फेसबुक से लाभ उठा लेगा, और इसी वजह से हम कई बार उन फेक न्यूज़ के जाल में फस जाते हैं और वह सारे इतिहास को सच मानने पर मजबूर हो जाते हैं जो कि सत्य नहीं होता,
हम चीन के उत्पादों का बहिष्कार तो कह रहे हैं पर क्या हम पूर्ण रूप से उनका बहिष्कार कर सकते हैं ? क्योंकि हमारी और देश कई देशों की निर्भरता इतनी ज्यादा हो चुकी है कि हमारे देश में कई कंपनियां अभी तक चीन से उत्पाद मंगा रही है,
पर आखिर हम चीन का उत्पाद बहिष्कार करके खरीदेंगे किसका हमारे देश में उत्पादन क्षमता इतनी है नहीं कि हम सारे खुद के बनाए हुए उत्पाद इस्तेमाल कर सकें, और जिन जिन देशों से हमें आयात में घाटा हो रहा है वहां हम अपना निर्यात बढ़ा सकें, अभी तक सिर्फ कुछ चुनिंदा देश ही इसमें शामिल हुए हैं हमें चाहिए कि हम पूर्ण रूप से निर्यात को अग्रसर करें,
टीवी न्यूज़ चैनल्स मीडिया यह सब कवरेज करके सिर्फ हमें हमारे इतिहास की ओर ले कर जा रहे हैं, वह दिन भी दूर नहीं अब आने वाले समय में कि हिंदू मुस्लिम के नाम पर लड़ाई झगड़े बढ़ते जाएंगे, क्योंकि न्यूज़ चैनल्स में न्यूज़ कम और ऐसे कार्यक्रम ज्यादा चलाए जा रहे हैं, जिससे कि सांप्रदायिक सौहार्द में मिलावट हो सके, और सरकार भी इस ओर ध्यान नहीं दे रही है पक्ष हो चाहे विपक्ष यहां सबको मीडिया कवरेज से फायदा मिल रहा है, सब अपनी राजनीतिक जमीन खोजने की तलाश में मीडिया चैनल्स को खुली छूट दे रहे हैं,
"सुशांत को न्याय" दिलाने के नाम पर जिस तरीके का कार्यक्रम चलाया गया था वह सब आपको अभी तक याद होगा,
रोज टीवी डिबेट में इस तरह के मुद्दे उठाना राष्ट्रवाद राष्ट्रवाद आतंकवाद आतंकवाद पाकिस्तान पाकिस्तान हिंदू मुस्लिम लव जिहाद, यह सारे मुद्दे जरूरी हैं पर इतने भी नहीं कि आम आदमी की क्या दुर्दशा हो रही है उसको भूल जाएं, और हम लोग भी इन सब चैनल को क्यों देख रहे हैं यह हमें समझना पड़ेगा, इससे बेहतर तो मुझे आज का दूरदर्शन लगता है, जिसमें शांत भाव से खबरें पढ़ी जाती हैं,
आम लोगों की राय रखने के लिए चार पांच विशेषज्ञों को बुलाया जाता है और यह कहा जाता है कि वे लोग आम आदमी के पक्ष रख रहे हैं, अगर इन असल में आम आदमी के पक्ष या फिर उनकी जरूरतों की चिंता होती तो यह ट्विटर पर जब बेरोजगार ट्रेंड करते हैं उसको न्यूज़ बनाकर चलाते, यह उसे न्यूज़ बनाकर चलाते जो कि एक गांव देहात में घटी घटनाओं से लोग सिस्टम के खिलाफ भारी गुस्सा दिखाते हैं,
आप खुद ही विचार कीजिए मेरी इन बातों का और सोचिए कि हम क्या खुद की तुलना पाकिस्तान से कर सकते हैं, और क्यों पाकिस्तान की खबरों या फिर उनके न्यूज़ चैनल की डिबेट को हमारे चैनल में चला जाता है, वहां के बारे में यह बताया जाता है बार-बार मीडिया चैनल के द्वारा कि वहां लोग पढ़े लिखे नहीं हैं कट्टरवादी स्थिति काफी ज्यादा है, पर हम लोग क्या कर रहे हैं हम लोग भी अपने यहां विकास के मुद्दे से भटक कर उन मुद्दों की ओर ध्यान दे रहे हैं जिससे कि देश मैं एक बेरोजगार को कुछ नहीं मिलने वाला,
हमारे देश में युवाओं की जनसंख्या सबसे ज्यादा है और इन युवा जनसंख्या का सरकार को भी फायदा उठाना चाहिए उन्हें रोजगार देकर ताकि वह ज्यादा से ज्यादा मेहनत करके देश की अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकें, पर जब सरकार यह कह दे कि रोजगार देना सरकार का काम नहीं है अब सवाल उठता है कि क्या रोजगार का ठेका एक आम इंसान ने ले रखा है, हम सरकार को क्यों चुनते हैं ताकि वह ऐसी सरकारी नीतियां बना सके जिससे कि प्राइवेट तथा सरकारी कंपनियां अपना व्यापार का विस्तार कर सके और ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन कर सके,
अगर चुनाव से पहले कोई सरकार आपसे यह कहे कि हम आप को रोजगार देंगे आप हमें वोट दीजिए, और चुनाव के बाद वही सरकार आपसे कहे कि रोजगार देना हमारा काम नहीं है आप लोग आत्मनिर्भर बनिए तो किस बात पर आप ज्यादा भरोसा करेंगे,
अगर आपको मेरी बात पर भरोसा नहीं है तो किसी भी आने वाले चुनाव की तारीख को देख लीजिए और नेताओं के भाषणों को याद रखी है उनके किसी ना किसी भाषण में जरूर कहीं ना कहीं रोजगार का मुद्दा जरूर होगा तो आखिर में वे इस मुद्दे को क्यों उठाते हैं?
हिंदू मुस्लिम भेदभाव, तुष्टीकरण की राजनीति यह सभी के सभी एक तरह से मापदंड है सत्ता बनाए रखने के, आप लोग सवाल ना पूछ सके इसलिए एक नया मुद्दा पैदा किया जाता है, और जब धीरे-धीरे करके चुनाव पास आते हैं तो वह सारे के सारे जो मुद्दे होते हैं वह पोटली में बांधकर आपको एक साथ परोसा जाता है ताकि आप लोग अपने जो अहम मुद्दे हैं उनसे ध्यान भटका कर राष्ट्रवाद और ऐसे कई अन्य मुद्दों पर वोट देकर आ जाए,
मैं आपसे सवाल पूछता हूं आपने किसी नेता को चुना क्या वह राष्ट्रवादी नहीं होगा ? अगर वह आपको यह कह रहा है कि मैं राष्ट्रवादी हूं दूसरा कोई राष्ट्रवादी नहीं मिलेगा तो इसका मतलब यह है वह अपनी सत्ता बचाने की कोशिश कर रहा है, राष्ट्रवादी यहां सभी हैं जो राष्ट्रवादी नहीं है उनकी पहचान सरकार को करनी चाहिए और जेल के अंदर भेजना चाहिए ना की उनके लिए यह व्यवस्था की जाए की वह भी खुलेआम सरकार और देश के खिलाफ भाषण दे,
सत्ता के रंग में हर कोई रंग ना पढ़ा है यहां, यहां जवाब देने के लिए भी किसी ना किसी को जिंदा रखना पड़ता है, अगर यहां कोई विरोधी नहीं मिला इन्हें तो उनके लिए मुश्किल हो जाएगा जनता के सवालों के जवाब देना, इसलिए वे इन विरोधियों पर सिर्फ जुबानी वार करते हैं कानून का प्रहार नहीं करते हैं,
अगर कोरोनावायरस महामारी अर्थव्यवस्था के लिए एक्ट ऑफ गॉड था तो अमेरिका क्यों कहता है कि चीन कि वुहान लैब से यह बना है? हम तो सीधे-सीधे चीन का नाम भी नहीं ले सकते !!
जो लोग अंधभक्ति का चश्मा पहने हुए हैं एक बात में उन्हें बता दूं कि कृपया करके थोड़ा पढ़ लिख भी लिया कीजिए ताकि आप भी जान सके कि देश को आगे बढ़ाने के लिए असल मुद्दे हैं रोजगार अर्थव्यवस्था को ऊपर उठाना और नई पीढ़ी के लिए रोजगार सृजन करना, हर साल लाखों करोड़ों बच्चे स्कूल कॉलेज से पास होकर निकलते हैं, और उस नई पीढ़ी का भविष्य आज से ही तय होता है, अगर हम आज मैं अपने वर्तमान को देखेंगे तो हम अपने कल को नहीं बदल पाएंगे, और फिर अगले 5 साल हम यही सोचते रहेंगे कि पिछले 70 वर्षों में क्या गलती हुई थी
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