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चुनावी मौसम दुबारा Election season again

हर चनाव में एक ही हमारी बदनसीबी हमेशा रहती है कि हम जातिवाद धर्म वगैरह के नाम पर दोबारा उन लोगों को सत्ता सौंप देते हैं जो सिर्फ विकास के नाम पर आप से वोट मांगने आए होते हैं, मैं किसी सरकार का विरोधी नहीं,  पर जो सामने घटनाएं घट रही हैं वह सही नहीं है, 
भारत में दो पार्टियां राज करती आ रही है शायद भविष्य में भी करती रहें, आप एक पार्टी पर इल्जाम लगाओगे तो वह दूसरी पार्टी के दामन में छुपके यह आपसे कहेगी कि पहले इनके दामन को देखिए कि कितना गंदा हो चुका है, यह सच्चाई भी है कि आपके आंसुओं से यह राजनीति की रोटियां सेकते हैं, 

बिहार चुनाव से पहले भी तो केंद्र सरकार कई सारी घोषणाएं कर सकती थी, पर आप सभी को पता है कि चुनाव नजदीक हैं तो ऐसा होता ही रहता है,  कुछ महीने पहले बिहार की सरकार ने केंद्र सरकार से वेंटिलेटर की मांग की थी, जिसे पूरा कर पाने में केंद्र सरकार लगभग नाकाम रही थी पर आज नहीं तो कल किसी न किसी दिन कोई घोषणा जरूर होने वाली है समझ लीजिए चुनाव आ गए,

आप जल्दी ही किसी नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र में अपनी जांच करवा लें और देख ले कि आप स्वस्थ  हैं कि नहीं, क्योंकि कई लोग जो सत्ता समर्थित लोग होंगे उनकी तबीयत अब बिगड़ने वाली है, कई महीनों से किसानों का आंदोलन उग्र दिशा की ओर बढ़ता जा रहा है इसका कारण है सरकार के द्वारा बगैर किसानों से पूछे अध्यादेश पास करवा देना, और हो भी क्यों ना इसमें MSP (मार्केट सेलिंग प्राइस) जो कि किसान के लिए एक अहम बिंदु है उस में ढील दे देना, इस बिल का कई राष्ट्रीय किसान संगठन विरोध कर रहे हैं और इस बिल को वापस लेने की मांग भी कर रहे हैं, हालांकि इसमें कुछ अच्छी चीजें हैं पर जो विशेषज्ञों का मानना है वह यह है कि इससे प्राइवेट बिजनेस वाले स्टॉक होल्डिंग करेंगे मतलब कि वे बाजार में किसानों की उपज का मूल्य घटा और बड़ा  सकने में सक्षम होंगे, इससे उन गरीब किसानों को नुकसान होगा जो कि एमएसपी से अपने उत्पादन को सुरक्षित कर लेते थे, 

बात यहीं नहीं रुकती यहां दूसरी ओर बेरोजगार भी परेशान बैठे हैं जो सरकार से सवाल पूछ रहे हैं कि हमें नौकरी कब मिलेगी ?
सरकार का जवाब यही रहता है कि आत्मनिर्भर बनो  आत्मनिर्भर का मतलब होता है कि खुद का व्यापार करना, या खुद का कोई छोटा-मोटा ठेला लगाकर उसमें पकौड़े तलना, यह हास्यास्पद नहीं है, पर एक गंभीर विषय है सोचने लायक 
क्योंकि इस देश में कई ऐसे छात्र या फिर किसी प्राइवेट कंपनी में कर्मचारी हैं जिनकी ख्वाहिश रहती है की सरकारी नौकरी ही उनकी पहली प्राथमिकता बने, अब एक उदाहरण के तौर पर कोई बेरोजगार छात्र है वह काफी समय से टीचर की नौकरी के लिए आवेदन कर रहा है पर नौकरी ना मिलने या ना होने के कारण क्या उसे पकोड़े तलने चाहिए ? क्योंकि उसकी क्षमता है कि वह कई छात्रों को शिक्षित कर सकें पर वही भविष्य का शिक्षक अगर पकोड़े तलने बैठ गया तो ?...

और चलिए अगर ज्यादातर बेरोजगार इस तरह के अन्य कार्य को शुरू भी कर देते हैं तो क्या उन्हें वह फायदा होगा, ना तो उन्हें इस कार्य से कोई ज्ञान अर्जित होगा और ना ही उनके उज्जवल भविष्य की रूपरेखा तैयार हो पाएगी, और वही बेरोजगार अगर किसी कंपनी या फिर किसी स्कूल में रोजगार प्राप्त करता है तो उसके ज्ञान की सीमा भी बढ़ेगी और दूसरा शायद भविष्य में वह आत्मनिर्भर भी बन जाए, पर सरकार यहां तो सीधे बेरोजगारों को आत्मनिर्भर बनने के लिए कह रही है जिनके पास ना ही कोई प्रशिक्षण है, और ना ही इतना पैसा कि खुद का व्यापार शुरू कर सकें, सरकार को इन और कई ऐसे जो युवा हैं जो खुद का व्यापार शुरू करने की चाहत रखते हैं उनके लिए वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए,

क्या सरकार जो अपनी स्वामित्व वाली कंपनियों की हिस्सेदारी जो बेच रही है क्या वह सही है ?
क्योंकि सरकार को जब पैसे की जरूरत पड़ रही है तो सरकार कभी ना कभी इन कंपनियों की हिस्सेदारी बेची जा रही है, ऐसा नहीं है यह कंपनियां घाटे में चल रही है इनमें से कई कंपनियां ऐसी हैं जो कि सरकार के मोटे मुनाफे का कारण है, पर सरकार अपने खर्चे को कम करने के लिए अगर सरकारी कंपनी की हिस्सेदारी बेचना शुरू कर देगी तो आप समझने की कोशिश कीजिए कि इससे आप पर क्या असर होगा 

आने वाले समय में सरकारी पदों की रिक्तियों में कमी होना, धीरे-धीरे करके इन कंपनियों का प्राइवेटाइजेशन की ओर झुकाव होना, और सुरक्षा की गारंटी ना होना 
सुरक्षा संबंधित उन लोगों से जो कि कोई सरकारी बीमा योजना का लाभ ले रहे हैं, यह सरकारी बैंक की सुविधाओं को ले रहे हैं, आपको यह लगेगा कि शायद यह संभव नहीं हो सकता सरकार अपनी पूरी हिस्सेदारी नहीं भेज सकती खासकर बीमा के क्षेत्र में ....
कुछ समय पहले ही सरकार ने 25 फ़ीसदी हिस्सेदारी बीमा क्षेत्र में बेच दी है और आप सभी यह जानते होंगे कि अगर सरकार की हिस्सेदारी किसी भी कंपनी में 50 फ़ीसदी से कम रही तो वहां सरकारी निर्णयों को पूर्णता लागू नहीं किया जाता, इसका मतलब यह है कि जिसके पास कंपनी की हिस्सेदारी 50 फीसद से अधिक होगी निर्णय लेने का अधिकार भी उन्हीं के पास होगा, 

अगर आप स्वस्थ हैं तो आप सही हैं आप सुनने की क्षमता रखते हैं और ऐसी बातों को पढ़ने की भी, गिरती अर्थव्यवस्था की शुरुआत लगभग 2017 के बाद से ही शुरू हो चुकी थी, परंतु 2020 के शुरुआत से पहले आप एक बार जरूर देश की जीडीपी का हाल देख लीजिएगा एक बार लगभग 4 फ़ीसदी पर हमारी अर्थव्यवस्था आकर ठहर गई थी, और इसका मूल कारण यह है कि विदेशों में मांग घटना और देश में भी मांग घटना और उत्पादन क्षमता में गिरावट आना, यह तब तक जारी रहेगा जब तक देश मैं बेरोजगारी कम नहीं होगी, लोगों के पास नौकरी होगी तभी वह खर्च करेंगे जब  वह खर्च करेंगे तो बाजार में उत्पादन क्षमता बढ़ेगी और उत्पादन क्षमता के बढ़ने का मतलब है नए रोजगार का सृजन होना,
 जब बाजार में तेजी आएगी तो तभी आर्थिक विकास दर में बढ़ोतरी होगी, 

यह देश धर्म जाति के नाम से कुछ समय तक तो चल जाएगा पर आखिर में इंसान रोजी रोटी के लिए ही आवाज उठाएगा, और शायद अभी लोगों के पास रोजी रोटी है तो वे अपने आप को धर्म जाति से चलने दे रहे हैं !

सरकार के द्वारा कई सारे किए गए काम भी हैं जो कि सराहनीय हैं पर वे सभी सराहनीय काम मीडिया के द्वारा रोज बताए जा रहे हैं, हमारा काम है देश को सच बताना जो कि शायद आज के दौर में धुंधला हो चुका है, और कट्टरता के मुखोटे को पहनकर कई लोग इसे स्वीकार करना  नहीं चाहते 

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