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बुजुर्ग एक परिवार की एटीएम मशीन Elderly one family ATM machine

क्या बुजुर्ग आज के दौर में एक परिवार के लिए एटीएम बैंक बन चुके हैं, मैं यहां सभी की बात नहीं कर रहा कुछ चुनिंदा परिवार है जो अपने, माता पिता की सेवा सिर्फ इसीलिए कर रहे हैं ताकि उन्हें उनकी पेंशन का हिस्सा  मिलते रहे इसी वजह से उन्होंने अपने माता-पिता को जीवित रखा हुआ है, कड़वी बातें हैं पर सत्य है आपको समाज में कुछ ऐसे लोग दिख जाएंगे, जो अपने परिवार के बुजुर्ग सदस्य की बात सुनना तो दूर उन पर उल्टा क्रूरता दिखाते हैं, 

एक बुजुर्ग पति पत्नी को सुरक्षा तब रहती है जब उन्हें यह पता रहता है कि हां हमारे बुढ़ापे में हमारा ख्याल रखने के लिए हमें सरकार के द्वारा या फिर कहीं ना कहीं से हमें पेंशन मिल ही रही है, और परिवार के बाकी सदस्यों का ध्यान सबसे पहले उनकी पेंशन पर ही जाता है, आप इन लोगो को आसानी से पहचान सकते हैं यह समाज के हिस्सा भी हैं, यह हर महीने के आखिर में या फिर महीने की शुरुआत में, अपने पिताजी माताजी को जबरदस्ती घसीटते हुए ले जाते हैं, उनसे पैसा निकलवाते हैं और अपनी दिनचर्या के कार्यों में उसे इस्तेमाल करते हैं, जो बुजुर्ग माता-पिता यह सोच समझ कर बैठे थे कि हां बुढ़ापे में हमें पेंशन के द्वारा सुरक्षा मिली रहेगी, उन्हीं के बच्चे हमदर्दी का दिखावा करके उनके सारे पैसों से ऐश करते हैं यह समाज के कुछ चुनिंदा लोग हैं जो कि लोगों के सामने दिखावा करते हैं कि हां हम अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा रोज कर रहे हैं बगैर किसी निस्वार्थ के, पर महीना खत्म होने के बाद में ख्याल आता है कि वे माता-पिता सिर्फ एक एटीएम मशीन है उनके लिए, 

आप समाज का हिस्सा हो तो यह कड़वी सच्चाई आपको भी पता होगी और अगर आप इसे स्वीकार नहीं करते हैं तो समझ जाइए आप समाज के उस हिस्से में रह रहे हो जहां से आप कभी बाहर नहीं निकले, यहां मैं उन लोगों को अलग रखता हूं कि जो अपने परिवार के किसी बुजुर्ग पर निर्भर है और खुद भी शारीरिक रूप से असमर्थ है कुछ करने के लिए, उनके लिए यह एक मजबूरी है, और समाज ऐसे लोगों की मदद करने के लिए कभी आगे आता नहीं है, ना सरकार नहीं कोई अमीर व्यक्ति और ना ही कोई समाज का तबका,

आप के आस पास घूमने वाले कुछ ऐसे व्यक्ति भी होंगी तो सिर्फ यह दिखावा करते हैं कि बुजुर्गों की सेवा करना उनका पहला धर्म है, पर उन्हीं के घर में उन्हीं के परिवार के किसी बुजुर्ग व्यक्ति की हालत बहुत ही बुरी रहती है, 
जिस बुजुर्ग को पेंशन नहीं उसको उस परिवार के सदस्य एक भोज  के रूप में देखते हैं, पुत्र अपने पिता को एक तरफ से भोज  समझ बैठता है, क्योंकि उसे लगता है कि उसके सारे खर्चे यही जा रहे हैं, परिवार मैं एक बुजुर्ग व्यक्ति का बोझ उसे इतना खटकता है कि उसे यह लगने लगता है कि आखिर यह बुजुर्ग व्यक्ति मुझे क्या दे रहा है;
बुजुर्ग पिता का बोझ वह व्यक्ति नहीं उठा पाता, उसे उसके  पिता के किए गए एहसान कभी याद ही नहीं आते, वह यह नहीं समझ पाता कि जिस बुजुर्ग पिता को वह इस तरीके से वह समझ रहा है उसी बुजुर्ग पिता ने उसे चलना सिखाया उसकी शिक्षा का ध्यान रखा, उसे इतने ऊंचे पायदान पर पहुंचाया जहां से वह समाज में अच्छे बुरे की सीख समझ सके, पर पुत्र का पिता के प्रति दिमागी मानसिकता बदलने में देर नहीं लगती, 

हम बुजुर्ग व्यक्ति और छोटे बच्चों को एक समान देखते हैं, जैसे जैसे इंसान बुजुर्ग होता जाता है वह छोटे बच्चे जैसी हरकतें करना शुरू कर देता है, कई लोग उम्र के इस पड़ाव में आकर अपनी दिमागी स्थिरता खो बैठते हैं, तब उन्हें जरूरत होती है उनके परिवार के सदस्यों की जिससे पुत्र/पुत्री बहू, और जैसे परिवार के अन्य सदस्य, पर हमारे समाज को क्या है ? 
समाज में यह स्थिति है कि एक बुजुर्ग व्यक्ति अगर अपने जीवन भर की कमाई जमा करता है तो सिर्फ दो ही कारणों से, पहला परिवार पर आने वाला कोई आर्थिक संकट, दूसरा परिवार के भविष्य के लिए सुरक्षित खर्च जिसमें वह अपने बेहतर भविष्य की कल्पना करता है, और वह यह समझ कर अपनी जीवन भर की कमाई को जमा करता है कि आखिर में उसके बुढ़ापे में अगर परिवार का कोई सदस्य उसकी मदद ना कर सका तो वह खुद के कमाए गए पैसों को इस्तेमाल करके अपनी बची हुई जिंदगी जी सके, 

पर आज का मनुष्य इतना  लालची हो चुका है कि वह अपने पिता माता की पेंशन पर भी नजरे गड़ाए बैठा है, वह जानता है कि यह उसके पिता माता की मेहनत की कमाई है पर फिर भी वह अनजान बनकर उस पैसे को लुटे  जा रहा है,
आप यह समझ सकते हैं कि जिस परिवार की किसी बुजुर्ग सदस्य ने अपनी मेहनत की कमाई को पहले ही अपने परिवार के हाथों सौंप दिया है, उसकी स्थिति आज के दौर में किस प्रकार की होगी, क्योंकि उसने अपने पास कुछ नहीं रखा और परिवार के बाकी सदस्य यह समझते हैं कि इन्होंने हमें कुछ दिया ही नहीं, समाज में कुछ चुनिंदा लोग हैं जो ऐसी विचारधारा से चलते जा रहे हैं, उन्हें भी पता है कि उनके बुजुर्ग होने के बाद उनके पुत्र या पुत्री के द्वारा वैसा बर्ताव करना स्वाभाविक हो सकता है, 

देश में वृद्धा-आश्रम की जरूरत क्यों पड़ती है, उनमें से कुछ कारण यह भी होते हैं कि बुजुर्ग मां-बाप के पास उनके बुढ़ापे की जमा पूंजी नहीं होती, और परिवार के बाकी अन्य सदस्य एकमत होकर इनको अपने समाज से दूर कर लेते हैं, कुछ वजह है पुत्र का ज्यादा पढ़ा लिखा हो जाना और माता-पिता का अनपढ़ रह जाना जिससे वह तुलना कर बैठता है, और अपने माता-पिता को बोझ समझ बैठता है उस पढ़े लिखे समाज में क्योंकि उसे लगता है कि अपने माता-पिता को साथ रखने से उसकी छवि पर अनपढ़ता का दाग लगेगा,

यह उस बदलते हुए समाज की रूपरेखा तैयार कर रहा है जहां आने वाले वर्षों में ऐसे विचारों से भरे हुए मनुष्य बढ़ते चले जाएंगे, क्योंकि अब वह समय नहीं रहा जब हमें एक तरह से बताया जाता था कि परिवार के बुजुर्ग सदस्य को किस तरीके से सम्मान देना चाहिए, जो लोग पश्चिमी सभ्यता को ओढ़ के बैठ चुके हैं वह धीरे-धीरे करके इस तरह के रीति रिवाज भी अपनाना शुरू कर चुके हैं, मैं फिर से कह रहा हूं मैं आप सभी को सम्मिलित नहीं करना चाहूंगा,
कुछ चुनिंदा ऐसे विचार वाले लोग मौजूद हैं इस समस्या को जगाने के लिए, और वे धीरे-धीरे करके समाज की सोच को बदलते जा रहे हैं,  शब्द थोड़े कड़वे है पर समझने पड़ेंगे सबको हम अपनी पुरानी सभ्यताओं विचारधाराओं को धीरे-धीरे करके पश्चिमी सभ्यताओं से खत्म करते जा रहे हैं, 

परिवार में एक मुखिया हमेशा मौजूद रहता है, जो निर्णय लेता है पूरे परिवार के लिए पर आज के दौर में मनुष्य इतना बदल चुका है कि वह निर्णय खुद ही ले जा रहा है चाहे वह गलत हो या सही, वह उस मुखिया से भी ऊपर उठ चुका है अपनी सोच के सिद्धांत से, हम कितने भी पढ़े-लिखे हो जाए पर हमें अपने आचरण और स्वभाव को कभी नहीं बदलना चाहिए, 
समाज में उठने बैठने के कारण गलत लोगों की संगति अकारण या फिर हमें किसी विचारधारा को अपना लेने के कारण ही हमारी दिमागी मानसिकता में बदलाव आना शुरू हो जाता है, और धीरे-धीरे करके हम महसूस करते हैं कि हम दूसरों से अलग विचार रखते हैं, विचारधारा अगर आपने सही अपनाई  हुई है तो आप जिंदगी में विकास ही करते रहेंगे, पर अगर आप गलत विचारधारा की ओर मुड़ गए तो उस प्रभाव में बहते बहते आप गहरे समुंदर में जा कर डूब जाएंगे और बाहर निकलने का आपको कोई रास्ता वहां नजर नहीं आएगा !!
धन्यवाद 

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