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विकासशील से विकसित राष्ट्र की ओर from developing to developed nation

 हमें अभी तक यही पता है कि विकासशील और विकसित देशों में यही फर्क होता है कि विकासशील देश विकसित देशों की राह पर चल रहे हैं,  विकसित देशों का अर्थ है जहां सारी सुविधाएं एक शहर में मौजूद हो,  और विकासशील का मतलब है कि जहां कार्य भी संपन्न नहीं हुआ है,  तो क्या हम और हमारा देश विकासशील के रास्ते पर है या फिर विकसित देशों की श्रेणी में आता है?
 अगर आप विकसित देश में  रहते हैं तो आपको पता होगा की आप कितने भाग्यशाली, या फिर आपको सारी सुविधाएं शायद मौजूद हो जो कि एक विकासशील देशों में एक आम नागरिक को हासिल नहीं हो पाती है, 
 क्या एक अर्थ इसका यह भी है की हम पता  लगा सकते हैं कि विकसित देशों में अब वह अवसर नहीं बचा है जो विकासशील देशों में अवसर मौजूद है,  कई सारी कंपनियां विकासशील देशों में ही अपने उद्योगों का निर्माण क्यों कर रही है?

 विकसित देशों में जो कंपनियां अभी मौजूदा स्थिति में है उन्हें पता है कि  इस देश में अब विकास करने योग्य उनकी कंपनी के लिए कोई भी बाजार मौजूद नहीं है,  जो कंपनियां जो कि अपना हाथी का स्वरूप लेकर अर्थात बाजार में सबसे बड़ी कंपनी बनकर उभरती है उसके लिए अपना खुद का बाजार एक छोटा सा प्रतीत होता है इसलिए वह विकासशील देशों की तरफ रुख करती है और वहां जाकर  उन देशों की अर्थव्यवस्था को विकसित करने में सहयोग करती हैं, 
 परंतु इन कंपनियों का उद्देश्य क्या एक अर्थव्यवस्था को विकसित करना ही होता है? इनका मूल रूप से उद्देश्य होता है ज्यादा से ज्यादा उस देश में लाभ अर्जित करना,  उस देश के हर एक व्यक्ति हर एक इंसान की जरूरतों को समझना और उन्हें उनके हिसाब से उत्पाद  का चुनाव करने की आजादी देना, यह विकासशील देश भी भविष्य में विकसित देशों की श्रेणी में आएंगे तो क्या इन देशों में आम नागरिकों की जरूरत खत्म होती चली जाएंगी?

  नई जरूरतों के साथ नई कंपनियों का उदय भी होगा और इसका एक समान उदाहरण के तौर पर हम अपने आम जीवन में देख सकते हैं,  जैसे  कुछ वर्षों पहले तक हम कीपैड वाले मोबाइल ही  इस्तेमाल करते थे,  परंतु बढ़ती हुई तकनीक और आम लोगों की जरूरतों के हिसाब से मांग की आपूर्ति और आज के दौर में टच स्क्रीन मोबाइल का चलन जो कि एक आम बात लगती है, 
  जो भी आज के दौर में कई सारी कंपनियां मौजूद है इनमें से कुछ कंपनियों का अस्तित्व शायद भविष्य में ना रहे,   जो भी  कंपनियां आम नागरिकों के बदलाव स्वभाव को पहचानते हैं, और स्वीकार करते हैं व उनके आधार पर खुद को बदलते भी हैं, तो वह कंपनी फिर अपनी  विकास की रफ्तार पर चलती जाएगी और वह आपको भविष्य में भी नजर आएगी, 
  जो देश ऊर्जा में तेल के संसाधनों पर निर्भर है,  वे सभी देश नई तकनीकों पर काम कर रहे हैं ताकि वह आत्मनिर्भर बन सकें और उन देशों पर निर्भर ना रहें जिनसे वो  कच्चा तेल आयात करते हैं, 
 विकसित देशों में कई जगह कई शहरों में इस तरह के कार्य शुरू हो चुके हैं,  और यह देश अपने नागरिकों को ज्यादा से ज्यादा अपने देश में निर्मित संसाधनों का उपयोग करने को कह रहे हैं,  इसमें अवसरवादी है बाहरी कंपनियां भी जो कि उन देशों में वह नई  तकनीक लाना चाहती हैं, और अवसरवादी है उन्ही देशों की घरेलू कंपनियां जो कि उन्हीं तकनीकों पर कई वर्षों से काम कर रही है, 

 हम हमारा भविष्य नहीं देख सकते हैं पर हम अपने भविष्य की कल्पना कर सकते हैं, कि आने वाले भविष्य में जो  बदलाव सामान्य रूप से होना है उस बदलाव को रोका नहीं जा सकता,  किस आने वाले भविष्य की कल्पना आज़ से शुरू होती है और  पहले से इसपर काम शुरू हो चुका है, 
 जो कंपनियां पर्यावरण को बर्बाद करते हुए अभी भी उन पुराने संसाधनों का उपयोग करके पर्यावरण में वातावरण को दूषित कर रहे हैं  ये कंपनी शायद भविष्य में नजर आए,  और जो कंपनियां पर्यावरण के हितों को समझते हुए अपनी तकनीक में बदलाव करते हुए भविष्य को देखते हुए कार्य कर रहे हैं उन सारी कंपनियों को आप भविष्य में भी देख सकेंगे, 

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