दिमाग से खेलेगा तू, दिमाग से खेलेगा तू
इंसान हूं मैं जानवर नहीं जो कुछ भी कहेगा तू,
यह तेरा घमंड है अहंकार है,
औकात क्यों दिखाता है , यहाँ तेरी कोई सरकार है
है हार है, हर एक बार है, मेरी जीत में तेरी हार है
हर बार हर एक बार है, जितना मुझे हर एक बार है,
तू क्या डराता है, मुझे क्यों बताता है,
खुद को देख तू, ऐसे ही जीना तुझे आता है
समाज का आईना बन झुठला मत और सच गिन,,
मुझे अच्छा नहीं लगता किसी को उसकी औकात बताना
यह सब तूने सीखा है, और हमने है तुझसे जाना,
तू है अगर अहंकारी, होगा सब पर भारी
तेरी यही बीमारी, सर्वनाश कर देगी दुनिया सारी
दूसरों को अहंकार से दबाएगा एक दिन,
वही अहंकार तेरे सामने आएगा किसी दिन
हाँ जाएगा, हाँ जाएगा, तू भूल जाएगा
जो तूने किया है, उसे सामने पाएगा
हाँ जाएगा, मेरा क्या जाएगा, मैं वही हूं
बस वक्त बदल जाएगा
तू आएगा, मेरे पास आएगा यह बतलायेगा
तभी तो मेरी बात को फिर से दोहराएगा
एक अहंकारी के सर्वनाश की कामना हम क्यों करें,
जब उसका खुद का अहंकार, उसका सर्वनाश किया जा रहा है..
यहाँ औकात दिखाने वालों की कोई कमी नहीं है, घमंड की सीमाएं लांघकर इंसान न जाने कितने शब्दों से दूसरे इंसान को उसकी औकात दिखाने की कोशिश करता है, यह शब्द औकात जो झुकाता है अमीरों के सामने गरीबों को, इस कविता के माध्यम से सिर्फ और सिर्फ मैंने एक घमंड और अहंकारी व्यक्ति को आईना दिखाने की कोशिश की है, इंसान समझदार हो कर भी ऐसी गलती कर बैठते हैं और अपने घमंड के आगोश में यह सब भूल जाते हैं कि जो वह दूसरे इंसान का मजाक बना रहे हैं या फिर जिस समाज में वह जी रहे हैं वहां अलग-अलग तरह के लोग भी रहते हैं, पर इन्हें खुशी मिलती है एक अपनी एक अलग वर्ग के साथ रहने में,
समाज में यह शब्द शायद आम प्रचलन में भी इस्तेमाल हो चला है जब दोस्तों के बीच में कहासुनी हो जाए या फिर रिश्तेदारों के बीच आपसी मनमुटाव, हम औकात शब्द को इस तरह से भी समझते हैं जैसे कि दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अपने तबके को ऊंचा करना और ज्यादा से ज्यादा खर्च करना अपने दिखावे में,
इंसान की मानसिकता इस तरीके से बदल चुकी है कि वह सिर्फ इन बातों में ही उलझा रहता है कि उसे समाज में एक ऐसे तबके को जवाब देना है, या फिर दिखावा करना है कि उस तबके से ऊपर उठकर अपने आप को हमेशा उस औकात सबसे ऊपर रखना ताकि वही सिर्फ इस शब्द का प्रयोग कर सकें,
अनेकों प्राकृतिक आपदाएं आएंगी, मनुष्य अपनी कमाई या फिर अपनी जो भी मेहनत है उसका नुकसान होते हुए देखता है, तो वह भी उस औकात शब्द के दायरे के अंदर आ जाता है जहां दूसरे उसके ऊपर वह शब्द प्रयोग करते हैं,
घमंडी और लालची लोगों को ही ज्यादातर औकात बताने या दिखाने में मजा आता है, और इस समाज में आप इसे बदल नहीं सकते,
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