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एक खाली किताब a blank book

 

एक खाली किताब सा महसूस हो रहा है
महसूस होता है कोई अपना सा मुझसे दूर हो रहा है 
कहने को मुझसे भी मजबूर हो रहा है 

हर मुश्किल समय और मुश्किल होता जा रहा है 
हर घड़ी हर वक्त बेवजह गुजरता जा रहा है 
इस खाली किताब के भी पन्ने कभी रंगीन हुआ करते थे 
वो प्यार भरे सपने कभी हसीन हुआ करते थे 
एहसास था मुझे सब खत्म होता चला जा रहा था 
मैं आत्मज्ञान की खोज में खोता चला जा रहा था 

असमंजस की स्थिति में फंस चुका था मैं 
विचारों की अनंत गहराई में धँस चुका था मैं 
समझने की चाह में जीवन भुला दिया 
अपनी ज़िद के सामने अपनों को ही रुला दिया 
अध्यात्म की ओर झुकाव महसूस करने लगा में
सवालों के जवाब को ढूंढने ध्यान करने लगा मैं,

इस स्थिति में बदलती गई परिस्थिति 
आर्थिक रूप से कमजोर हो गई हर एक तिथि 
मेरी गरीबी का कारण में ही बन बैठा हूं 
शाम सवेरे तन्हा बस ध्यान में मग्न रहता हूं 

ध्यान में मग्न, लीन भाषा शालीन, 
बदलते हुए स्वभाव को महसूस कर रहा हूं 
इस स्वभाव से समाज में अलग ना हो जाऊं,
ये कहने से डर रहा हूं 

मुझे मेरे जीवन का आधार मिल गया, 
विचारों से विचार उत्पन्न करने का विचार, मुझे मिल गया 
यह खाली किताबों को नए रंगों से मुझे फिर भरना है 
समाज के सामने नए नाम से मुझे फिर उभरना है, 

 जीवन का मूल सिद्धांत यह है कि हम अपने जीवन में कर्म करें फल की चिंता ना करें,  पर हममें से कई सारे युवा और कई सारे लोग अपने जीवन में इस तरह से भटक जाते हैं, कि वह सिर्फ जीवन को ही एक मूल लक्ष्य मानकर चलते हैं और यह समझ बैठते हैं कि हमें जीवन की सच्चाईयों को जानना है, और इस सिद्धांत को जानने के लिए वह अपनी पूरी जीवन यात्रा को एक अलग ही मोड़ पर ले चलते हैं, 
 हमारे जीवन एक खाली किताब सा है हम उसके पहले पन्ने में जो भी हमारे विचार होते हैं जो भी  हमने अपनी पूर्ण जिंदगी में कार्य किए होते हैं उन सभी का हम हर पन्ने पर बखान करते हैं,  और इसी से हमारी एक किताब बनती है खाली एक जीवन रूपी के शब्द को जानना या फिर जीवन के बारे में जानना सिर्फ जीवन का एक मूल सिद्धांत नहीं है, जीवन से जो जानकारियां ज्ञान हासिल करता है अपने जीवन काल में जो भी वह ज्ञान अर्जित करता है उसका उसे फल जरूर मिलता है भविष्य में, ताकि वह अपने खुद के निर्णय से एक समाज में बदलाव लाने की कोशिश कर सके,  खुद के हित की कामना हर मनुष्य का एक परम कर्तव्य रहता है, पर जो दूसरों के हित की कामना करता है वही मनुष्य समाज में एक बदलाव को जन्म देता है, 

 हम अपनी कठोर विचारधारा से जन्म नहीं लेते हमारी विचारधारा उत्पन्न होती है हमारे समाज से, हमारे विचारों से,  अगर हम अपनी स्वतंत्र विचारधारा से विचार करें और  सोचे,  तो हमारी खाली किताब  जो जीवन के कठिन परिश्रम से लिखी हुई होती है  वह कई लोगों को पसंद आती है, एक छोटा सा इसका अर्थ है आपके  विचारों की अगर कुछ कहीं पर सीमाएं हैं और आप उन निर्धारित सीमाओ के पार सोचने की क्षमता नहीं रखते हैं तो आप की किताब खाली ही रहेगी, 

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