-->

Ads 720 x 90

आखिर कातिल कौन है who is the murderer after all

 क्या यह कलयुग की शुरुआत है?  या अंत? हमने देखा कैसे महामारी में इंसान इंसान को मारने के लिए अनेकों प्रयत्न करता रहा,   वह व्यक्ति चाहता है सिर्फ खुद और अपने परिवार की सुरक्षा के लिए कुछ ना कुछ करना,  और ऐसी महामारी के दौर में ऐसा अवसर फिर कभी नहीं मिलने  वाला था,  इंसान इतना लालची हो चुका है कि आज वह दूसरे इंसान के अंदर भी  अपनी कमाई का जरिया ढूंढता रहता है,  जैसे इंसान या जानवर के मरने के बाद चील कौवे व गिद्धों की नजर  मास के ऊपर रहती है  वैसे ही इंसान की नजर जीते जी दूसरे इंसान की  संपत्ति और उसके मरने के बाद उसके शरीर में बचे हुए शारीरिक अंगों पर रहती है,  हम किस और जा रहे हम कैसी मानसिकता बना रहे हैं कि हमें खुद सोचना है और कैसे समाज के बीच में हम रह रहे हैं, 

 महामारी के दौर में कई लाशें लावारिस हो गई और कई लाशों की तो पहचान भी नहीं हो सकी पर कुछ ऐसी लाशें थी जो भाग्यशाली रही और उनका विधि विधान से अंतिम संस्कार हुआ है,  हमने इंसान के जीते जी उसको कहीं का नहीं छोड़ा और उसकी लाश पे भी हमने उसे लावारिस बना के छोड़ा,  अच्छे स्वभाव के लोग भी बुराइयां अपनाने से नहीं कतरा रहे हैं वह जानते हैं क्योंकि ऐसी महामारी और ऐसी दशा में वह भी लाचार है या फिर वह भी ऐसी  मानसिकता को अपना रहे हैं,
 जब भीड़ बढ़ती है तो इंसान इंसान की कदर करना भूल जाता है और वह समझता है एक आध की मौत से क्या फर्क पड़ता है अभी  भीड़ का कुछ ही हिस्सा कम हुआ है,  पर जब शमशान में लोगों को नंबर लगाना पड़े तो आप यह समझ लीजिए कि भीड कितनी बड़ी हो सकती है, 

 इंसान जब जिंदा था अपने शरीर के अंदर उसकी आत्मा मौजूद थी तब वह यह नहीं समझ सका कि आखिर इंसानियत क्या है, क्या वह समाज के लिए कर सकता है, क्या वह खुद के लिए कर सकता है, पर जब महामारी उसे जकड़ लेती है और वह मौत को गले लगा लेता है उसके बाद जो वह मंजर देखता होगा ऊपर से बैठकर वह पछताता होगा कि काश में जिंदा होता तो मैं इन लोगों की मदद सकता था, मैं इन्हें बचा सकता था या फिर इनको कुछ समझा सकता था,  और जिन लोगों ने इस को झेला है और जिन्दा बचकर आए भी होंगे उनमें से कई लोगों की यह सोच होगी कि मैंने झेला है  दूसरा ना झेले ऐसी महामारी, बहुत ही भयानक जो समय था मैंने व्यतीत किया है वह दूसरा कभी व्यतीत ना कर सकें, 
 हम खुद से कितनी भी कई स्तर पर कुछ भी कर ले कैसी भी तैयारी कर ले पर जब तक हमारे आसपास के लोग या आसपास का माहौल या फिर हमारा समाज इन बातों पर गौर ना करें कि  संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए सुरक्षा कैसे अपनाई जाती है किस तरीके से अपना बचाव करना है तो आप लोगों का भी सुरक्षित अरे पाना बहुत मुश्किल है कहीं ना कहीं से वह लोग आप लोगों तक भी उस संक्रमण को पहुंचाने में भूमिका जरूर निभाएंगे, 
 यहां मैं क्या जिक्र करूं उन अस्पतालों की व्यवस्था यहाँ  मैं क्या जिक्र करूं ख़त्म होते ऑक्सीजन की व्यवस्था का,  ऑक्सीजन मौजूद होते हुए भी आम आदमी तक ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाई और इसी वजह से कई लोग हमें अलविदा कह गए,  क्या वे सभी बच सकते थे ?  तो खुद सोचिए कि उनकी मौत का जिम्मेदार और कौन है वह गुनहगार जिसने समय पर ऑक्सीजन मुहैया नहीं करवाई,... 

 यहां कोई आपके सामने क्षमा अपनी गलती के लिए माफी या कोई भी ऐसा शब्द इस्तेमाल नहीं करेगा जिससे कि उसे अपनी गलती का एहसास हो,  यहां मजबूत ताकतें इल्जाम उस इंसान पे लगाएगी जो कि इस बीमारी से संक्रमित था और दर-दर ठोकरें खा रहा था ऑक्सीजन के लिए और इल्जाम उसी व्यक्ति पर लगेगा चाहे वह जिंदा है या नहीं,  आम जनता को बेवकूफ समझा जाता है और यह सत्य है जो लोग समझदार हैं समझ जाते हैं कि आखिर गलती किसकी है,
 जब तक हम अपने से ज्यादा समझदार चालाक व्यक्ति या फिर ऐसा व्यक्ति जो कि  दूसरों को  प्रभावित करता है ऐसे लोगों को अगर भगवान मानना शुरू कर देते हैं,  तब तक उन लोगों को अपने जीवन में अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा... 

Related Posts

एक टिप्पणी भेजें

Subscribe my diary poems updates on your email