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महामारी की गंभीरता Epidemic severity

 जो भी भीड़ का हिस्सा होते या फिर किसी भीड़ में शामिल होते हैं चाहे वह समर्थित हो चाहे वह विरोध करने वाले हो चाहे वह किसी धार्मिक संगठन से जुड़े हो,  अगर इस महामारी को फैलाने  से यह लोग जो इन भीड़ को संगठित करते हैं और इस भीड़ का नेतृत्व करते हैं अगर वही इसमें अति संवेदनहीन हो जाए,  और आम जनता के बीच में जाकर यह लोग भी अगर संवेदनहीनता का प्रतीक बनेंगे तो आप समझिए किस तरीके से यह भी जिम्मेदार हैं इस महामारी को फैलाने के लिए, 

 मेरी आम जनता से बस यही एक विनती है कि आप अपना ख्याल रखें जो बेवकूफ हैं जो कि अपने दिमाग से काम नहीं करते उन लोगों के बहकावे में ना आएं,  आपको खुद ज्यादा पता है कि आपकी जिंदगी आपकी है और यह जो आपने अपनी जिंदगी आप किसी और के भरोसे आप जी रहे हो तो आप समझ लीजिए कि आप किराए की जिंदगी जी रहे हो, 
 जो भी लोग मूर्खता पूर्ण किसी भीड़ का हिस्सा बन जाते हैं और ऐसी महामारी को हल्के में लेते हैं,  वह अभी नादान और अनजान है ऐसी महामारी से अवगत होने में उनके जब परिवार या किसी रिश्तेदार को जब ऐसी बीमारियां होती है तब एहसास होता है कि आखिर यह बीमारियां कितनी गंभीर है, 

 यहां आपकी और वीआईपी की लाशों में बड़ा अंतर होगा,  शायद आपको लकड़ी भी नसीब न हो सके और शायद वीआईपी को वो सब चीजें मुहैया कराई जाए,  यह बातें गंभीर है और इस गंभीर मुद्दे पर आप विचार भी कीजिए क्योंकि जिस तरीके से  महामारी से कई लोगों की मौत हुई है तो कई सारे लोग यह भी समझ रहे हैं कि यह सिर्फ एक दिखावा है, 
 क्योंकि वह यह देख रहे हैं कि चुनाव के समय या फिर प्रचार के समय यह भीड़ कहां से आ रही है और जो नेता यह भीड़ इकट्ठा कर रहे हैं आखिर वह इस गंभीर महामारी को गंभीरता से क्यों नहीं ले रहे हैं, 
 शायद हमें पता नहीं था कि दूसरी महामारी की लहर इतनी खतरनाक हो सकती है,  पर हमें अहसास होना चाहिए कि हमारी जनसंख्या इतनी ज्यादा है कि किसी ना किसी व्यक्ति के जरिए किसी व्यक्ति को कोरोना हो सकता है,  पिछले साल मैंने एक ब्लॉग लिखा था जिसमें मैंने कहा था कि अगर एक लाख से ज्यादा कोरोना के मामले आने लगे तो रोजाना क्या हालत होगी,  सिस्टम लाचार हो जाएगा इन सारी भीड़ को काबू करने में और जितनी ज्यादा मरीज़ों की भीड़ बढ़ती जाएगी किसी भी अस्पताल के लिए यह नामुमकिन साबित होगा उस भीड़ को संभाल पाना और भीड़ का इलाज करवाना, 
 शायद इस महामारी के समय मंदिरों से ज्यादा, चुनावों से ज्यादा, विदेशी व्यापार से ज्यादा, अस्पतालों की जरूरत लोगों को महसूस होने लगी होगी,  शायद आप मैं और हम सब यही समझते आ रहे थे कि अस्पताल अभी तक जितने थे हमारे लिए काफी थे, 

 आप अपनी खुद की मौत के खुद ही जिम्मेदार हो,  क्योंकि आपने अपनी जिंदगी के जो कठिन फैसले होते हैं जिसमें आपने अपने भविष्य को चुनाव करना होगा वह आपने सही तरीके से किया या नहीं किया यह आपकी जिंदगी उपर निर्भर करता है,  अगर आप खुशहाल तरीके से जी रहे हैं तो आपका  चुनाव सही था, 
 सोच और विचारों में बदलाव कीजिए और अपने भविष्य को देखकर ही सही चुनाव कीजिए जिससे कि आने वाले भविष्य में बदलाव हो सके, ना कि अभी जो हम अपने इतिहास में जी रहे हैं उस इतिहास में भविष्य में भी हम जीते रहे, 

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