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शब्दों की मर्यादा Decorum

 
वो मुझे अपशब्द कहते हैं कोसते हैं
 मन में भरी हुई कड़वाहट को जुबान से बोलते हैं
 मेरे पीछे मेरी ही बुराई दुश्मन हजार अनेक परछाई
 यह काली जुबान से है बदनाम 
 आज मेरा है नाम जो कभी नहीं था पहचान

 क्या  मैं हूं गलत या मेरे हैं अपशब्द
 जो भी है शब्द उनके ही शब्द हैं ये अपशब्द 
 समाज भी हैरान है जहां बोलता हर शख्स
 जो शब्दों की मर्यादा को सीमित ना कर पाए
 अपशब्दों की सीमाओं को तोड़ता चला जाए
 यह सिर्फ और सिर्फ दिमाग में गंदगी समेटते हुए जा रहे हैं
अपनी ही नहीं ये अपनों को भी सिखाते जा रहे हैं, 

ऊपर से दिखता है सभ्य समाज, लोग अनजान पर है हैरान
यहां पहनावे से नहीं जुबान से इंसान को समझा जाता है 
 फकीर तो वह लोग हैं जो अच्छा दिखावा करके भी,
 अच्छा पहनावा करके भी, शब्दों की मर्यादा लांघ जाते हैं
 
मेरा मजाक उड़ाने वाले, शब्दों की मर्यादा को लांघने वाले,
 नादान हैं वे सभी अपनी मानसिकता से,
 में मन में हंस के उनकी मानसिकता पर उन्हें माफ कर देता हूं,
 मजाक उड़ाने वाली बातों पर कभी ध्यान नहीं रखता हूं

 यह समाज क्या मुझसे भी सीखे क्या तुमसे भी सीखे
 जो भी हो वो चाहे, कुछ भी वो सीखे
 निर्भरता इंसान की मानसिकता पर निर्भर करता है
 वह जो भी ज्ञान हासिल करता है अपने जीवन में
 वही ज्ञान उस इंसान का भविष्य बदलकर रख देता है

 मेरी खुशी में जलने वाले मुझे अपशब्द कहने वाले
 तुम्हारी तो जुबान ही जलेगी मेरा कुछ नहीं जलने वाला
दुसरों की खुशियां अगर बर्दाश्त नहीं कर सकते 
 ना आज ना कल कभी तुम्हारा नहीं बदलने वाला

 हम किस समाज में जी रहे हैं हम क्या सीख रहे हैं यह सब हमारे आने वाले भविष्य को बदल कर रख देता है,  ऐसा नहीं है कि इंसान अपनी मानसिकता नहीं बदल सकता,  एक अपशब्द कहने वाला व्यक्ति या फिर जो अपने शब्दों की मर्यादा की सीमा को लांघ जाए,  वह व्यक्ति क्या मानसिक रूप से इतना मजबूत है कि दूसरों के द्वारा कहे गए शब्दों को सुनकर अपने शब्दों की मर्यादा को नियंत्रण कर सकें,  यह बात हो रही है आपकी मानसिकता के ऊपर कि आप कितना गलत सोच सकते हैं, 
 आजकल शब्दों की मर्यादा लांघना आम बात हो गई है लोग राह चलते किसी को भी अपने मन मुताबिक कुछ भी कह सकते हैं,  यह उनका अधिकार है पर एक तरह से यह साबित भी करता है कि उस व्यक्ति की मानसिकता या फिर वह व्यक्ति कितना कमजोर है जो हर छोटी सी बात पर भी अपने मस्तिष्क के नियंत्रण को खो बैठता है, 
 एक शांत स्वभाव व्यक्ति हमेशा जानने को उत्सुक रहता है, उसके मन में नए-नए सवाल उत्पन्न होते हैं और उन सवालों के जवाब जरूर ढूंढता है तो उसे पर चलता है की इस सवाल का शाब्दिक अर्थ यह है,  पर अगर हम किसी के साथ गाली गलौज करते हैं या फिर अपने शब्दों की सीमाओं को लांग कर एक नए स्तर पर उनका निर्माण करते हैं, तो हम उसी मानसिकता से अपनी अनंत गहराइयों में डूब जाते हैं, और चीन अब शब्दों को हम अपनी मानसिकता से अपनी जुबान पर लेकर आ रहे हैं उन शब्दों से हमारे चरित्र का पता चलता है,

 जो यह समझते हैं कि वह बेहद निर्भीक होकर यह शब्द कह सकते हैं या फिर कहते हैं समाज में, उन्हें समझ लेना चाहिए कि  कुछ दोस्त या फिर कुछ रिश्तेदार जो कि अपनी समाज में अच्छी खासी इज्जत बनाए हुए हैं वह इन लोगों से किनारा कर बैठते हैं,  अगर आप किसी को कुछ भी अपशब्द कह रहे हो तो आप उस का शाब्दिक अर्थ जानने की इच्छा जरूर रखो क्योंकि आपको पता होना चाहिए कि आखिर उसका असली मतलब क्या है, और अगर आप फिर भी इन बातों को जानते हो और और इन शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हो कोई आपके ऊपर निर्भर करता है कि आप आने वाले भविष्य में अपने आपको या फिर अपने आसपास के माहौल को किस तरीके से बदल रहे हो,

 यहां मैं शब्दों की मर्यादा पर काम कर रहा हूं और वहां कई सारे गंदगी भरी मानसिकता वाली सोच रखने वाले, नयी  गालियों का प्रक्षिक्षण सीख रहे होंगे, मुझे उम्मीद है शायद आप इसे पढ़कर थोड़ा बहुत अपनी मानसिकता और अपने शब्दों को नियंत्रण करना सीखें और शब्दों की मर्यादा में रहकर दूसरों से सभ्य तरीके से बात करें चाहे वह कितना गरीब क्यों ना हो,
 शब्दों की मर्यादा में रहकर शब्दों को सीखें

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