इतिहास में वर्षों से ही ऐसी व्यवस्था चली आती रही है, इंसान को जब कोई वस्तु चाहिए, चाहे वह दिनचर्या के उपभोग के लिए हो, या फिर लंबे समय तक इस्तेमाल करने योग्य हो, इन सभी उत्पादों को खरीदने के लिए उस इंसान के पास कोई कीमती वस्तु होनी चाहिए जिसकी कीमत उस दूसरी वस्तु के बराबर हो,
आज के आधुनिक युग में हम वस्तुओं का आदान प्रदान नहीं करते हैं बल्कि मुद्रा में इन सब वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है,
आज के आधुनिक युग में हम रुपए पर इतना ज्यादा निर्भर हो चुके हैं, जिसके बगैर एक व्यक्ति दो वक्त का भोजन भी नहीं खरीद सकता, परंतु क्या रुपए या फिर मुद्रा किसी व्यक्ति को उसका ईमान या फिर उसे खुद को बेचने पर मजबूर कर देती है ?
जैसे जैसे एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति के प्रति दया, उदारता, शालीनता जैसे भाव खत्म होते चले जाएंगे, वैसे-वैसे उस व्यक्ति की खुशी या फिर उसके दुख में उसके सहभागी भी कम होते चले जाएंगे,
जिनके पास ताकत और पैसा दोनों होगा लोग उनकी तरफ खिंचे चले आएंगे, इंसान पैसे के दम पर ताकतवर बनना चाहेगा, और जो ताकतवर है वह पैसे बनाना चाहेगा,
"यहां पैसे की भूख से, भूखे पेट चिल्ला रहे हैं,
पेट भरा हुआ हो फिर भी, बाहरी शरीर को सजा रहे हैं,
लालच से गला भरा रहता है,
दिमागी बुखार सिर्फ पैसों की ही बातें करता है,
रास्ते बहुत हैं पर सही गलत में फर्क नहीं जानते,
इंसान को मारेंगे तभी, पैसा और ताकत से लोग इन्हें जानेंगे,
आधुनिकीकरण में मुद्रा का लेनदेन भी ऑनलाइन के माध्यम से होगा, पर इंसान का दुश्मन असल में इंसान नही, मुद्रा ही रहेगी, मुद्रा बस एक मध्य का दरवाजा है, जिसके उस पार आपकी प्रिय वस्तु है,
विश्वभर में जिस प्रकार से मुद्रा के चलन में जिस प्रकार की तेजी आई है, उसमें सिर्फ आम आदमी की दिनचर्या ही नहीं बदली, उसका स्वभाव उसका आचरण भी बदलता चला गया, इसी मुद्रा से कुछ नए प्रयोग और उन नए प्रयोग से इंसान का मनोरंजन, इस प्रकार मुद्रा की कीमत आज के दौर में सोने से भी ज्यादा कीमती हो चुकी है,
मुद्रा जिसका अर्थ है कि हम जिस भी तरीके से, अपनी प्रिय वस्तु को खरीद रहे हैं, उसकी कोई कीमत अदा करना,
कीमत तो इंसान की भी है क्या वह बिक सकता है ?
क्या इंसान अपना ईमान हर जगह बेच सकता है ?
अदालतों में कई गवाह पलट जाते हैं, बड़े से बड़े व्यक्ति भी पैसों के दम पर बिक जाते हैं, ईमानदारी की मिसाल कायम करने वाले भी बेईमानी के दाग में लिपट जाते हैं,
ना इस दुनिया में कोई सच्चा है, ना ईमानदार है,
पैसों के दम पर ताकत है और पैसों से मचा हाहाकार है,
कुछ लोग पैसों का लालच को दिखाकर आपसे लाखों-करोड़ों लूट लेंगे, आप उनकी भक्ति में भक्ति गीत गाओगे,
क्योंकि वह आपको आपकी मीठी बोली की मिठास में भिगो लेंगे,
कई बड़ी बड़ी शख्सियतों की शख्सियत काबिले तारीफ थी, वह भी अपनी बेईमान छवि को छुपाने से छूट गए, जिन्हें हम ईमानदार का परम देवता समझते थे, देवता भी उन्हें देखकर उनसे रूठ गए,
पैसे और ताकत का मोह सभी को होता है, और जिन्हें इसका मोह नहीं है, उन्हें कोई मतलब नहीं है सांसारिक मोह माया से, उन्हें कोई मतलब नहीं है कौन सत्ता में हो और कौन विपक्ष में, और यह लोग दूसरों के जीवन से ना खेलते हैं और ना ही उनके जीवन पर राज करते हैं,
जिनके आप गुलाम बने बैठे हो सोच विचार से आचरण से स्वभाव से तो समझ लीजिए, आप युद्ध में उस सैनिक की तरह हो, जो युद्ध मैं कई योद्धाओं को हरा गया पर इतिहास के पन्नो में सिर्फ राजा का नाम ही दर्ज हुआ, आप सिर्फ एक पात्र मात्र हो, आपकी पहचान मेरी ही तरह है ।।।।
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