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भ्रम मैं किसान या सरकार Farmer or government in confusion

भ्रम में कौन है सरकार या किसान ?, यह सवाल मीडिया खुद किसानों से पूछ रहा है यह सवाल सरकार खुद किसानों से पूछ रही है, क्या वे सभी लोग जो सड़कों पर आकर प्रदर्शन कर रहे हैं क्या वह किसान नहीं है क्या वह भ्रम की स्थिति में सड़कों में बैठी हुई है एक भीड़ है, 
पंजाब और हरियाणा में क्या राज्य सरकार के द्वारा इन आंदोलनों को आग दी गई ?, दरअसल सवाल पूछने का अधिकार इस स्वतंत्र भारत में सभी को है, परंतु अगर कुछ गलत हो रहा है और उसके विरोध में आम जनता सड़कों पर उतर जाए तो सरकार उन्हें अगर विरोधी पार्टी की साजिश या भ्रमित भीड़ कह दे तो वह भी बिल्कुल सही नहीं है,

केंद्र में हर 5 साल बाद सरकार आम जनता के चुनावों के आधार पर तय होती है, और उन्हीं चुनाव में आम जनता तय करती है कौन उनके लिए हितकारी होगा और कौन उनके लिए हितकारी नहीं होगा, आम जनता देश के भविष्य को बदलने के लिए हर 5 साल में एक नया प्रतिनिधि नियुक्त करती है, और यही है स्वतंत्र भारत में आम जनता की ताकत, परंतु जिन  तरीकों से सरकार अपनी छवि आम लोगों के मस्तिष्क में बैठाना चाहती है वह छवि शायद धीरे-धीरे करके धूमिल होती जा रही है, इसका सीधा-सीधा तात्पर्य इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आम जनता को समझाने में सरकार कई बार नाकाम साबित हुई है, 
किसानों के द्वारा आंदोलन शुरू करना यह कोई महज इत्तेफाक नहीं है, और मीडिया के द्वारा इसे एक उग्र भीड़ घोषित किया जाना यह दर्शाता है कि हमारे देश में मीडिया कितनी स्वतंत्र है जो बगैर किसी तथ्यों के आधार पर किसी को भी दोषी ठहरा सकती है, 

सरकार को लगता है कि वह जितना ज्यादा जानती है आम जनता को उतना बिल्कुल नहीं पता, किसान बिल से किसानों को क्या फायदा या नुकसान होने वाला है यह सरकारें ज्यादा जानती है और किसान कम, दरअसल हमारे देश में ज्यादातर जनसंख्या पढ़ी लिखी है, इसके उलट हमारे देश में कई नेता कम पढ़े लिखे और अशिक्षित है,  फिर भी वे मानते हैं कि वह जनता से ज्यादा जानते हैं, उनका यह मानना महज स्वाभाविक नहीं हो सकता इसका असर भविष्य में देखने को जरूर मिल सकता है, किसान इसी बात से नाराज हैं और वे चाहते हैं कि जो भविष्य में घटनाएं घटने वाली है उसका असर  किसानों पर तो पड़ेगा ही आम इंसान की रोज की थाली पर भी पड़ेगा, 
कई किसानों का आधार इन 3 किसान विधायकों को सीधे-सीधे तौर पर वापस लिया जाना ही आंदोलन का पूर्ण रूप से सार्थक माना जाएगा, 
- 23 परसेंट की जीडीपी दर, और उसे और नीचे गिरने से बचाने के लिए ही एग्रीकल्चर सेक्टर ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, देश में एग्रीकल्चर सेक्टर सबसे ज्यादा हमारी जीडीपी में योगदान देता है और इससे कई सारे लोगों की आय सीधे तौर पर जुड़ी हुई है, किसान की फसल से सिर्फ किसान को ही फायदा नहीं होता, यह रोजगार देता है मजदूर को यह रोजगार देता है मंडियों को जहां अनाज भंडारण की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, 

क्या किसान सड़कों पर उतरे थे कि यह बिल पास हो जाए ?
क्या सरकार ने किसानों से बात की थी इन बिलों को पास करवाने से पहले ?
और क्या इसमें संसद के अंदर बहस होनी चाहिए थी या नहीं ?

सत्ता का घमंड जब अपने चरम पर होता है तब सरकारों को सिर्फ उनके हितेषी ही नजर आते हैं, बड़े कॉरपोरेट हाउसेस जो कि वॉलमार्ट की तर्ज पर अपने कई सारे भारत में बाजार खोल रहे हैं उन्हें चाहिए कि किसानों से वह ज्यादा से ज्यादा दामों पर खरीद कर भंडारण कर सकें और बाजार में मुनाफे के भाव में बेच सकें, किसी भी कंपनी के निर्माण का आधार सिर्फ और सिर्फ उस उत्पादन की बिक्री से फायदा देखना होता है, अगर उस बाजार में कई सारी कंपनियां मौजूद है तो किसानों को उसकी फसल का अच्छा भाव मिल सकता है, परंतु अगर धीरे-धीरे करके वह सारी कंपनियां खत्म हो जाए और सिर्फ बाजार में एक दो ही कंपनी बची रहे, तो इसका सीधा सीधा मतलब है कि किसान को सस्ती दरों पर अपनी फसल बेचने पर मजबूर होना पड़ेगा, और उस मुनाफे का ज्यादा हिस्सा कंपनी के द्वारा उनके कर्मचारियों पर खर्च किया जाएगा, 

किसानों के सुधारों के लिए यह तीन बिल एक निर्णायक भूमिका निभा सकते थे, परंतु जिस तेजी से इन बिलों को पास किया गया और इन बिलों के कई बिंदुओं से किसानों के अंदर जिस तरीके से संदेह की भावना उत्पन्न होने लगी, उनका संतोषजनक जवाब सरकार के द्वारा नहीं दिया गया, किसान बिल किसानों के हित और अहित दोनों में, सरकार के द्वारा हित और किसानों के द्वारा अहित दर्शाया गया है, जिसका मतलब है कि सरकार यह कहना चाह रही है कि उनके द्वारा जो बिल लाया गया है वह बिल्कुल सही है और किसानों के हित में काम करेगा और किसान इसे अभी तक समझ नहीं पा रहे हैं, 
वहीं दूसरी ओर किसान इस बिल को पढ़कर जिस तरीके से आंदोलन कर रहे हैं तो उनका मानना कहीं हद तक सही भी है क्योंकि वे जमीन से जुड़े हैं और उन्हें पता है कि कौन सी सरकारी नीतियां जमीनी स्तर पर लागू है और कौन सी नहीं है, उन्हें पता है कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग में किस तरीके से किसान कॉरपोरेट हाउसेस की नौकरी करने लगेगा, उन्हें पता है कि अनिश्चित भंडारण से कई सारे उद्योगपतियों को फायदा पहुंच सकता है, किसान यह सब समझता है फिर भी उसे नादान कहा जा रहा है, किसान जानता है कि एमएसपी MSP(MINIMUM SUPPORT PRICE) उसकी फसल को एक सुरक्षा प्रदान करता है, किसान सब जानता है और समझता भी है, 

अब आप खुद ही सोचिए एक पढ़ा लिखा किसान अपने हित के बारे में ज्यादा जानता होगा या फिर सरकारें  जोकि अपने हितों को साथ में लेकर चलती हैं, 
केंद्र सरकार के द्वारा कई सारे निर्णय 2014 से लेकर अब तक लिए गए हैं उनमें से कई निर्णयों का नतीजा सकारात्मक नहीं देखने को मिला है, नोटबंदी एक बहुत बड़ा उदाहरण है, जनता के द्वारा हमारे प्रतिनिधि चुने जाते हैं और वही प्रतिनिधि आज जब आम जनता सड़कों पर है उन्हें भीड़ या फिर भ्रमित किसान का दर्जा दे रही है, आप समझ सकते हैं भ्रम में आज कौन है .......

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