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जुर्म की दास्तां Crime tales



यहां मौत का नाच है,  कटे सरों का ताज है 
जिंदगी सस्ती है, यहां मौत भी हंसती है, 
जान लेने वाले, छीन ले निवालें 
खून के प्याले, यह खून पीने वाले, 

जुर्म की आग है, धधकती हुई राख है
बेरोजगारी का वार है, जुर्म एक हथियार है, 
यहां बढ़ती महंगाई है, छुपी हुई सच्चाई है, 
विद्रोह की आग ये किसने लगाई है, 

मैं भविष्य नहीं देखता, बस उसे समझता हूं 
समाज का बदलाव शब्दों से कहता हूं 
सब धोखेबाज है छुपे हुए राज है, 
जुर्म की आग से जली हुई लाश है, 

ये दंगे भड़काते, अपनों से लड़ाते, 
हमदर्दी जताते यह अपना बताते, 
यहां कत्लेआम है, गवाहों के भी दाम है 
न्यायपालिका हैरान है, इतने गुनाह है फिर भी वो माफ़ है ?

यहां पैसों की बोली में, चलती है गोली 
गुनाहों की होली में, लगती है बोली, 
मौत का सौदा ये होता है रोज, 
कोई मरता है रोज, और कोई बचता है रोज़, 

मौत का सिलसिला ऐसे ही जारी रहेगा, 
इंसाफ की लड़ाई में, गुनाहों का पलड़ा भारी रहेगा, 
सहेगा तब तक तू, जब तक रहेगा, 
इस धरती में बोझ बनकर गुनाहों को सहता रहेगा, 
 कुछ ना कहेगा, बस चुप ही रहेगा, 
मौत का डर तुझे भी रहेगा 


बढ़ती जनसंख्या सिर्फ प्रकृति के लिए ही विनाशकारी नहीं होती यह मानव के लिए विनाशकारी है, बदलते स्वभाव के  अनुरूप/आचरण के अनुसार मनुष्य अलग अलग पहचान अपनी, आम लोगों के बीच बनाना शुरू कर देता है, और जिस तरीके से गुनाह बढ़ते जा रहे हैं तो इसका मतलब यह है कि या तो वे लोग मजबूरी से उस और धकेले जा रहे हैं या फिर खुद इन चीजों को अपनाना चाहते हैं , यह मजबूरी नहीं है यह बदलता स्वभाव है जिससे समाज में कई लोग अपनाना चाह रहे हैं और अपनाए जा भी रहे हैं, 
बढ़ते जुर्म में बढ़ती जनसंख्या भी जिम्मेदार है,  यहां बढ़ती जनसंख्या का तात्पर्य है कि मनुष्य एक दूसरे के प्रति संवेदनशील नहीं रह गया है, उसके आसपास हो रही मौतों हत्याओं से उसे कोई मतलब नहीं रह गया है, क्योंकि उस मनुष्य को ऐसा आभास या तो कराया जा रहा है, या तो वह कर रहा है कि इस बढ़ती जनसंख्या में कहीं ना कहीं कोई ना कोई बूढ़ा होकर या फिर अपनी उम्र से पहले मौत को अपना रहा है, 

खुलेआम किसी की हत्या करना, और आसपास के लोगों द्वारा उसे तमाशबीन के रूप में बस देखते रहना, हम शायद उस व्यक्ति को भी भीड़ का हिस्सा मान चुके हैं जिस भीड़ का हिस्सा हम हैं और जब तक कोई व्यक्ति उस भीड़ के हिस्से से ऊपर नहीं उठे उसकी अहमियत औरों के लिए ना के बराबर है, ऐसी सोच और ऐसी मानसिकता को अपनाकर लोग इस भीड़ का हिस्सा बने हुए हैं, 

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