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NOTA एक उम्मीदवार NOTA candidate

"मेरा उम्मीदवार NOTA इस बार"

आपके हर एक चुनाव में एक उम्मीदवार खड़ा होता है जिसका नाम है (NOTA) नोटा, यह चुनाव में आपके हर उम्मीदवार के सामने खड़ा होता है पर यह जीत नहीं पाता क्यों, क्योंकि जो उम्मीदवार लूटा किए दूसरी तरफ होते हैं उन्होंने जाति संप्रदाय और धर्म अधर्म के खेल में आप लोगों को इस तरीके से बांध लिया होता है कि आपको समझ नहीं आता है कि आप नोटा को भी जितवा सकते हैं, कई विधायक सांसद मंत्री महोदय तो जहां तक कहेंगे कि आप नोटा को वोट मत दें वह वोट आपका बेकार हो जाएगा, इसमें गलती नोटा की भी थोड़ी बहुत है क्योंकि नोटा अपना चुनाव प्रचार नहीं करता, ग्रामीण इलाकों में तो लोग नोटा को मात्र अपने वोटों को बर्बाद करना ही समझते हैं, परंतु सत्य बात यह है कि अगर आप नोटा को चुनाव में जितवा देते हैं पूर्ण बहुमत से तो लूटा आपको एक और विकल्प देगा स्वच्छ राजनीति की, जितने भी आपके सामने उम्मीदवार खड़े होंगे चाहे जितने भी आपराधिक केस दर्ज क्यों ना हो उनके ऊपर, उनको समाज के हर तबके को जवाब देने का यही सही तरीका है कि आप अपना विकल्प नोटा को दें, मैं आप को प्रोत्साहित नहीं कर रहा हूं कि आप मोटापे ही बटन दबाएं अगर आपको लगता है कि आपने जिस उम्मीदवार को चुना है और वह उम्मीदवार आपके समाज में कुछ काम कर सकता है तो आप उस विकल्प को देख सकते हैं, परंतु अगर आप यह समझते हैं कि कोई भी विधायक या फिर कोई भी मंत्री महोदय आपके इलाके में होने वाली महत्वपूर्ण समस्याओं को नहीं देखता है, 
आपके पास विकल्प मौजूद है समय रहते इसका इस्तेमाल करें नहीं तो शायद भविष्य में नोटा चुनाव लड़ना छोड़ देगा, और नोटा भी समय के साथ हार मान बैठकर अपने आप को इन चुनावी रणनीतियों से अलग कर लेगा,    

आप किसी सरकारी नौकरी या प्राइवेट नौकरी में जब काम करते हैं तो आपके काम का बोझ रहता है, वहां पर अपने काम के मालिक नहीं हो, और हम सरकार को किस नजरिए से आज देख रहे हैं यह आप समझने की कोशिश करें, सरकारों का काम क्या होता है ?
जैसे ही बिजनेस चलता है वह हमेशा प्रॉफिट के आधार पर ही टिका रहता है, वैसे ही एक सरकार चलती है जो कि अगर फायदे में रहे तभी वह टिकी रहती है, जितना उसने इन्वेस्ट किया है बाजार में अगर उससे ज्यादा फायदा ना हुआ हो तो वह सरकार बेकार है, पर हमने किस छवि के आधार पर अब सरकार चुनना पसंद कर दिया है ....
धर्म, जाति, संप्रदाय पक्ष या विपक्ष या विचारधारा को आधार बनाकर हम सरकारों को चुन लेते हैं, पर असल में हमारे द्वारा चुनी हुई सरकार का क्या कार्य होना चाहिए ?
देश की अर्थव्यवस्था को स्थिर बनाए रखना या फिर विकासशील प्रगतिशील के रास्ते पर ले जाना, देश में हर धर्म हर जाति हर संप्रदाय के व्यक्ति के हितों की रक्षा करना जो देश में जन्मा हो, संविधान की अनुपालना करना जिससे कि देश में शांति सौहार्द बना रहे,   

पर जिस देश में लोग धर्म जाति संप्रदाय के आधार पर बटे  हुए हो, यहां से अच्छे पढ़े-लिखे लोग बाहर इन्हीं कारणों से विदेशों में बसने को मजबूर होते हैं, आपको मैं इनकी पूरी साजिश समझा देता हूं कि किस तरीके से आप को बरगलाते हैं, कहलाते हैं, चुनाव से पहले आपके दिमाग में घुसने की कोशिश करते हैं, मान लीजिए कोई राजनीतिक पार्टी चुनाव लड़ रही है और उस राजनीतिक पार्टी का कोई उम्मीदवार आपके इलाके से खड़ा है, इसमें पढ़े-लिखे होने की जरूरत नहीं है कोई भी एरा गैरा, गंभीर आपराधिक मामलों में गुनहगार भी चुनाव लड़ सकता है, और चुनाव आयोग भी इस मुद्दे पर शांत रहता है क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को पता है कि अगर उन्होंने चुनाव आयोग को ऐसी ताकतें प्रदान कर दी तो सत्ता में वे दोबारा नहीं आ पाएंगे, और तब शुरू होता है धर्म, जाति, संप्रदाय का खेल जिसमें आप फस जाते हो, और ज्यादातर इसमें गरीब लोगों को फसाया जाता है क्योंकि उन्हें पता है कि यह गरीब लोग अनपढ़ होते हैं और ऐसे ही राजनेताओं के लिए उनकी सत्ता बहाल करते रहें, इन गरीबों के पास भी दो ही विकल्प होते हैं या तो सत्ता में पक्ष में जो बैठी सरकार है, उसके समर्थन में जाए या फिर विपक्ष के समर्थन में जाए, 

गरीब सोचता है कि मुझे बस दो वक्त की रोटी मिल जाए तो काफी है चाहे कोई भी सरकार मुझे दे रही हो, मध्यमवर्ग आदमी सोचता है कि मेरी कुछ बचत हो जाए जिससे कि मैं आगे चलकर अपने परिवार की आर्थिक स्थिति सही कर सकूं, और अमीर व्यक्ति यह सोचता है कि मेरा पैसा किस के राज में सुरक्षित रहेगा मतलब कि मेरे द्वारा जो इकट्ठा किया गया पैसा है वह कौन राजनेता सुरक्षित रख पाएगा, तो अब सरकारों का ध्यान पहले से बदल चुका है आप सरकार गरीबों पर ध्यान नहीं देती ना ही मध्यमवर्ग पर मध्यमवर्ग और गरीब वर्ग उनके लिए एक समान हो चुका है, क्योंकि अब उन्हें पता है कि 5 या 10 साल से ज्यादा इनके द्वारा सत्ता संभाली नहीं जा सकती और सत्ता परिवर्तन निश्चित होना ही है, एक उदाहरण के तौर पर मैं आपको बता दूं जैसे आप और आपका मित्र दो अलग-अलग पार्टियों से चुनाव लड़ रहे हैं, आपने 5 साल सत्ता संभाली उसके बाद आपको ऐसा लगा कि आपके द्वारा किए गए भ्रष्टाचार को आप छुपा नहीं सकते इसलिए आप अपने अपने मित्र के साथ सांठगांठ कर ली जैसे कि जब वह 5 साल बाद चुनाव जीतकर आएगा तो उसके द्वारा भी भ्रष्टाचार किया जाएगा, और ऐसे करके लोगों के पास सिर्फ दो ही विकल्प होंगे चुनाव में मतदान करने के लिए, और इसमें जो तीसरा विकल्प होता है वह अगर इस में घुसने की कोशिश करेगा मतलब की चुनाव लड़ने की कोशिश करेगा तो यह दोनों उसे किसी ना किसी तरीके से बाहर कर देते हैं, दिल्ली चुनाव एक अच्छा उदाहरण है आपके सामने, 

अब क्या नहीं कर सकते और क्या कर सकते हैं यह आप समझने की कोशिश करें , अगर आप चुनाव लड़ नहीं सकते तो चुनाव में आप वोट करने के अधिकार का फायदा सही तरीके से उठा सकते है, आप पहले यह देखने और समझने की कोशिश करें कि आपकी इलाके में कौन सा उम्मीदवार सबसे बेहतर होगा, समाज में बेहतर बदलाव के लिए बेरोजगार युवा भी आ गया सकते हैं और चुनाव लड़ सकते हैं, हालांकि इसके लिए जो बेरोजगार युवा है उन्हें यह समझने की क्षमता होनी चाहिए कि चुनावी रणनीतियां किस तरीके से बनाई जाएंगी उस इलाके की भौगोलिक क्षमता के अनुरूप, और जो भी दागदार छवि के नेता या अनपढ़ नेता है उनकी तुलना आप कर सकते हैं खुद से, आम जनता को आप समझा सकते हैं कि आपके द्वारा लाया जाने वाला बदलाव किस तरीके से उस इलाके की रूपरेखा बदल सकता है, 
देश में कई सारे युवा बेरोजगार घूम रहे हैं राजनीति उनके लिए सुनहरा अवसर है वह देश में बदलाव ला सकते हैं,
अगर आपको कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है या फिर उनकी दागदार छवि के कारण आप को ऐसा लग रहा है कि आपका कीमती वोट बेकार हो जाएगा तो आप नोटा  भी दबा सकते हैं,

देश की स्थिति ऐसी हो चुकी है की लोगों की विचारधारा बदली जा रही है, लोगों को बस यह समझाया जा रहा है कि जिस सरकार को उन्होंने चुना है वह सर्वोपरि है, मतलब कि आपके द्वारा मताधिकार जो हर 5 साल बाद इस्तेमाल किया जाता है उसको आप किनारे में रखें और चुनाव देना बंद कर दें, आपके द्वारा एक बार दिया गया चुनाव सरकार के लिए काफी है, और सरकार चाहती भी यही है कि लोग उनसे जुड़े रहे भले ही देश के असल मुद्दे जैसे कि महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार इन विषयों पर बात करना बंद हो जाए और जो भी सरकार के द्वारा बनाए गए विषय हैं जैसे कि देश भक्ति, अंधभक्ति, कट्टरवादी विचारधारा, इतिहास में बदलाव और ऐसे ही कई अन्य मुद्दे हैं जिनमें सरकार लोगों को एक तरह से पूरे 5 साल के लिए व्यस्त रख सकती है, मतलब कि जब सरकार की सत्ता वापसी होती है तो सरकार का काम खत्म, 4 साल आराम और आखिरी 1 साल फिर दोबारा से चुनाव प्रचार अभियान शुरू,  आपको चिंता करनी चाहिए क्योंकि आपने जिस व्यक्ति को मंत्री बनाकर किराए के मकान पर रहने के लिए भेजा था 5 साल के लिए, वह धीरे-धीरे उस 5 साल के मकान को अब हमेशा के लिए अपने नाम करवाने जा रहा है, उल्टा इसमें यह होता है कि हर 5 साल बाद वापसी किराया मांगे आता है और आप चुपचाप दे देते हो बगैर सवाल किए, बल्कि उससे और आपको दोनों को पता है कि मालिक आप हो और वह नौकर हैं फिर भी वह अपने आप को मालिक जताता है और आपको नौकर !!

अपने एक मतदान की कीमत को पहचानो और नौकर बनने से बचो।।


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