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ध्यान का केंद्र सिर्फ एकाग्रता Concentration is just the center of attention


मैं किसी धार्मिक ग्रंथ किताब से अपने विचार नहीं व्यक्त कर रहा हूं मैं सिर्फ जो मैंने महसूस किया है मैं उससे अपने विचार  आपके सामने रख रहा हूं, ध्यान तपस्या जो कि एक मनुष्य को शांति का आभास प्रदान करती है, ध्यान लगाते वक्त मैं उस अनंत ब्रह्मांड की गहराई में खो जाता हूं, कभी-कभी दिल भी भर आता है कि इस बड़े से ब्रह्मांड में हम एक तिनके के समान है हमारी कोई औकात नहीं, कोई कीमत नहीं, और ना ही कोई अस्तित्व है, मैं जब ध्यान लगाता हूं तुम मैं सबसे पहले एक अंधकार रूपी वातावरण में जाने की कोशिश करता हूं जहां सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा हो, क्योंकि जिस रोशनी से आप उस अंधेरी की ओर जा रहे हैं वहां भी आपको रोशनी नजर आएगी, जी अंधेरा इतना शांत होता है कि भाड़ का वातावरण अगर कितना भी दुर्गम हो मतलब कि अगर आपके आसपास के वातावरण में बहुत सारा शोर हो, अगर आप वहां ध्यान अपना स्थिर रख पाएंगे तो मैं कहूंगा कि आप मन के सबसे अमीर व्यक्ति हैं, आस पास होने वाले शोर-शराबे को हम अपनी ध्यान की शक्ति से निर्धारित कर पाते हैं कि हमें कौन सा शोर सुनना चाहिए या कौन सा शोर हमें नहीं सुनना चाहिए,

"ना भूतकाल में था मैं, ना वर्तमान में हूं, और न भविष्य में रहूंगा"  

आत्मा अमर है और अमर रहेगी बस फर्क इतना है, हम जिस शरीर की काया को ढो रहे हैं उसको हमें बदलना पड़ेगा,  सत्य के मार्ग पर चलते रहो कर्म करो फल की चिंता मत करो, जब जब मैं ध्यान लगाता हूं मैं महसूस करता हूं कि मैं अपने शरीर को उस अंतरिक्ष से 1 तिनके के समान महसूस कर रहा हूं,  मन बहुत विशाल है, यह इतना गहरा समुंदर है कि आप जितना सोचोगे आपको नई नई चीजें उतनी ज्यादा दिखाई देने लगेगी, और कभी-कभी तो आपको महसूस होगा कि आप जैसे भविष्य देख रहे होंगे, इंसान के जन्म लेने के बाद, उसकी आत्मा का मानव शरीर में प्रवेश होने के बाद,  धीरे-धीरे करके वह समाज की चीजों को जानने और पहचाने लगता है, उसे महसूस होने लगता है कि वह चीज शरीर में प्रवेश करके आया है उसकी क्षमताए कहां तक सीमित है, जैसे कि किसी का शारीरिक रूप से कमजोर होना, मानसिक रूप से कमजोर होना, ऐसी कई चीजें हैं जो उसके साथ घट सकती हैं, जब आप ध्यान लगाना शुरु करेंगे तो आप खुद को समझ पाएंगे कि आपके अंदर क्या-क्या क्षमता हैं ,

ध्यान लगाने के लिए जरूरी है आंखें बंद होना, मैं हमेशा शुरुआत करता हूं इसमें पहले जिंदगी में बीते हुए अभी तक के सभी खुशनुमा पल जिससे कि मैं जितनी भी मन में जो दुख बीत रहे होंगे उनको दबा सकूं, उसके बाद जब मुझे महसूस होता है कि मैं एक खाली कमरे में बैठा हूं मतलब कि मुझे  विचलित करने वाली जो भी इंद्रियां थी, जैसे आसपास का माहौल शोर-शराबा, वह सभी मुझे सुनाई देता है पर मैं उसे संगीत की तरह महसूस करने लग जाता हूं, और जब मैं ध्यान में कुछ ज्यादा ही खो जाता हूं तब मैं कभी-कभी महसूस करता हूं कि वह जो संगीत मुझे सुनाई दे रहा था, वह बजना बंद हो चुका है और इसका मतलब है मैंने जिस तरीके से ध्यान लगाया है उससे मुझे एक शांत माहौल मेरे दिमाग के अंदर महसूस होना शुरू हो जाता है, 
जब मैं  वह सारे खुशनुमा पल महसूस करना शुरू कर देता हूं  और मुझको महसूस हो कि अब मुझे कोई भी चीज विचलित नहीं कर सकती, तब शुरू होती है मेरे ध्यान की पहली प्रक्रिया 

■ ध्यान की पहली प्रक्रिया 
अब मैं अपने मन के ब्रह्मांड में आ चुका हूं और मैं सबसे पहले ही यह सोचने की क्षमता रखूंगा, कि मैं पृथ्वी के किस छोर में बैठा हूं, मतलब की मैं यह महसूस करने की कोशिश करूंगा कि मैं खुद को आसमान से किस तरीके से देख पा रहा हूं, मेरे आस-पास का माहौल मेरे मन से मुझे कैसे दिखाई देता है, जहां तक मैंने जो अपनी नजरों से देखा है हर उस तस्वीर को चाहे वह कोई पहाड़ हो, किसी का मकान हो, या फिर कोई ऊंची इमारत, अब यहाँ से होती है कल्पना शुरू की वह इमारत किस तरीके से बनी हुई होगी, उसमें रहने वाले लोग कैसे होंगे और उस इमारत की सीढ़ियां भी कैसी होंगी, अगर मैंने अपने मन में इस तरीके से नक्शे बना लिए तो मैं समझ सकता हूं  कि मैं जब उस मकान में असलियत में जाऊंगा तो शायद मुझको थोड़ा सा अंतर नजर आएगा मेरी कल्पना में और वास्तविकता में, और शायद इत्तेफाक भी हो जाए कि मैंने जो सोचा था उसमें से कई चीजें मिलती जुलती हो, 



■ ध्यान की दूसरी प्रक्रिया 
इसमें मैं सबसे पहले यह समझने की कोशिश करूंगा कि मेरे आस-पास के माहौल में जिस तरीके से लोग रह रहे हैं, उनका स्वभाव आचरण क्या है ? 
तो इसे पहचानने के लिए सबसे पहले मुझे लोगों को अलग-अलग श्रेणी में रखना होगा जैसे ज्यादा गुस्सा या कम गुस्सा करने वाला व्यक्ति, हसमुख या शांत स्वभाव का व्यक्ति, लालची या फिर सत्यवादी व्यक्ति, इन श्रेणियों में बांटने के बाद में उन्हें पहचानने की कोशिश करता हूं, जिन से मैं एक या दो बार मिला हूं  उनको पहचानने में थोड़ा समय लग सकता है, क्योंकि उस व्यक्ति के साथ मैंने सिर्फ एक या दो बार ही बात की है और या तो मैंने उस व्यक्ति की बात दूसरे व्यक्ति से करते हुए सुनी है, व्यक्तियों को इन सीढ़ियों में बांटने के बाद मुझे यह अनुभव होता है, कि इन श्रेणियों से भी बढ़कर उनकी और श्रेणियां मौजूद है, जिन्हें पहचानने में थोड़ा ज्यादा समय लगता है ,  ध्यान की हर प्रक्रिया में  हमेशा आंखें बंद रहेंगी, और मुझे यह आश्वस्त करना होगा खुद को कि मेरे द्वारा बनाए गए विचार उस व्यक्ति के प्रति सही है या गलत है, और इसका प्रमाण सिर्फ दो-तीन चीजों से ही लग सकता है, उस व्यक्ति के साथ ज्यादा वाद-संवाद करके, लालची की श्रेणी में रखकर  जिससे पता चल सके कि वह किस और श्रेणी का है, और आखरी उसके आसपास के माहौल को  कि किन लोगों की संगति में वह अपने आप को खुश पाता है, यह सारे जवाब ध्यान से पता कर सकते हैं  !!

■ ध्यान की तीसरी प्रक्रिया 
मानव और उसके व्यहवार को समझ लेने के बाद मैं अब जाता हूं इस ब्रह्मांड की अलौकिक शक्तियों को समझने के लिए, शुरुआत करता हूं मैं सूर्य देवता से, और धीरे-धीरे समझते हुए मैं जाता हूं इस ब्रह्मांड से बाहर की ओर, इस जवाब को खोजने के लिए मैं अपने मन की गहन विचार धारा के ब्रह्मांड में गोता लगाए डूबता जा रहा हूं, क्या ब्रह्मांड एक विशाल समुंदर के अंदर एक मोती में समाया हुआ है, ? ऐसे कई सारे कल्पनात्मक विचार उत्पन्न होते हैं, मुझे आपको हम सबको पता है ब्रह्मांड का कोई अंत नहीं है पर जिस अंत की हम कल्पना कर सकते हैं वह कल्पना मुझे आपको हम सबको यहां पर अपनी मन की गहन शक्तियों से खोजनी होगी, इस विशालकाय ब्रह्मांड में स्थिर आकाशगंगा, जिसमें करोड़ों लोगों का जीवन बसा हुआ है, कुछ हमारे जैसे भी कहीं जन्म लेकर अपना जीवन जी रहे होंगे, गहन विचार कीजिए इन बातों पर और सोचिए कि आप ध्यान की तीसरी प्रक्रिया में हैं मुझे यहां से और आगे जाना है, 
कभी-कभी मेरा मन विचलित होता है और उत्साहित भी हो उठता हूं, कि हमारे अलावा पृथ्वी के अलावा और भी कई ऐसी जगह हैं जहां जीवन मौजूद हो सकता है, क्या भगवान के द्वारा वहां भी जीवन की उत्पत्ति के प्रमाण होंगे, कल्पना को और बल दीजिए और सोचिए कि आने वाले भविष्य में होने वाली विज्ञान की अति विस्मरण  क्षमताओं का, जिस भविष्य में हम कल्पना कर सकेंगे और शायद जीवन के प्रमाण ढूंढ सकेंगे दूसरे ग्रहों में,

■ ध्यान की चौथी प्रक्रिया 
प्रकृति, जीवन, जानवर जीवन मृत्यु का चक्र, इसे महसूस करने के लिए हमेशा एक पेड़ की कल्पना होनी चाहिए, मैं हमेशा एक पेड़ की कल्पना करता हूं, जिसने मैं यह महसूस करता हूं कि वह किस तरीके से अपना जीवन जी रहा है उसके अंदर जिस तरीके से प्रवाह हो रहा है उसके फैलाव का वह बताता है कि वह अपना जीवन कितने सुकून से जी रहा है, जड़ों से लिया गया पोषण किस तरीके से पत्तियों तक पहुंच पा रहा है, इस ध्यान में मुझे यह आभास होता है कि जीवन चक्र हर वस्तु का है, जो भी इस धरती पर मौजूद है चाहे वह जीवित हो या फिर निर्जीव वस्तु हो, पर मनुष्य का पतन उन सभी निर्जीव और जीवित वस्तु से पहले होने वाला है, क्योंकि मनुष्य शांत नहीं है और बाकी यह सब शांत बैठे हैं, 
मन की उत्सुकता और कौतूहल इतना ज्यादा आगे बढ़ा देती है इंसान को वह ध्यान की चौथी प्रक्रिया में नहीं पहुंच पाता, इस ध्यान की चौथी प्रक्रिया में पहुंचने के बाद मनुष्य का आभास होगा कि उसके द्वारा उसकी संपूर्ण जीवन में बस गंदगी ही फैलाई गई, शरीर के द्वारा छोड़ी गई गंदगी जीवित रहते हुए और मृत्यु के पश्चात दोनों समय रहती है, जीवन में अच्छे कर्म सद्भाव और स्वस्थ शरीर के साथ संपूर्ण जीवन जीना यह हर मानव अपने जीवन में प्राथमिकता रखता है,

■ ध्यान की पांचवी और आखरी प्रक्रिया 
इसे मैं ध्यान में सिर्फ एक कल्पना मात्र कहता हूं कि शायद कोई कभी ध्यान की तीसरी और चौथी और पांचवी प्रक्रिया को सही ढंग से पूरा कर सकें, मैं ना तीसरी प्रक्रिया में हूं ना चौथी प्रक्रिया में हूं ना मैं पांचवी प्रक्रिया में अभी मौजूद हूं, पर आपके विचार आप को कितनी गहराई तक खुद को समझने में लगा देते हैं यह आपको समझना पड़ेगा, पांचवी प्रक्रिया में शरीर और आत्मा के वजन को लगभग बराबर कर देना, इस प्रक्रिया में मनुष्य की जितनी भी इंद्रियां है वह उसके काबू में रहती हैं चाहे उसके सामने कैसी भी विपदा आ जाए, शांत स्वभाव सरल जवाब और हमेशा भक्ति में लीन रहना, अर्थात पांचवी प्रक्रिया में आत्मा का ज्ञान मनुष्य के शरीर को होने लगता है हमने जन्म से पहले जितनी भी कार्य किए थे और जितने भी जन्म हमने लिए हैं, उन सभी का ज्ञान धीरे धीरे आना शुरू हो जाता है, मनुष्य खुद को यह समझने में देर नहीं लगाता कि उसकी आत्मा का पूर्व जन्म हो चुका है, परंतु पिछले जन्म की यादें और जो उसका ज्ञान होता है वह उसको वापस नहीं मिलता, 

हर जन्म में हम 0 से शुरू करते हैं, कोई अगर आपके सामने कहे कि आपके सामने एक और जीवन है, उसकी बातों पर बिल्कुल विश्वास ना करें, ध्यान लगाएं और खुद से इन सवालों के जवाब ढूंढने की कोशिश करें आपको ऐसे ऐसे सवाल आपके दिमाग में घूमेंगे कि जिनके जवाब इस ब्रह्मांड में भगवान के अलावा किसी के पास नहीं होंगे !!
ध्यान लगाने से आपका मन एकाग्र शांत होगा और आप उन सवालों से विचलित नहीं होंगे जो आपको एक तरह से आपके स्वभाव को बदलते जा रहे हैं, मृत्यु से भय कम होगा, आत्मविश्ववास निर्मित होगा की मेरे शरीर की काया से लोग मुझे पहचानते है, मेरे स्वभाव से लोग मुझे समझते है, और मेरे द्वारा किए गए कार्यो से लोग मेरे नाम और अस्तित्व को याद रखते है । ।  



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