सत्य की तलाश है कोई नहीं मेरे आस-पास है
झूठ से बिछी पड़ी लाश हैं सब हताश है निराश है
नहीं दिखा कोई विकास है अभी भी विश्वास है
कोई नहीं मेरे आस-पास है सब हताश है निराश है
आस है मुझे विश्वास है कोई न कोई खास है
बस दुआओं में विश्वास है कोई मिले यही विश्वास है
सत्य में बोलने चला तब तब झूठ का धुआं उठा
दबाता चला गया सत्य को झूठ के धुए में
जलाता चला गया वह राख के कुएं में
झूठ का जाल सीमित समय तक रहता है
सत्य जानने के लिए सच्चा झूठ के परदे चीरता है
इसमें आपको राजनीतिक मिलावट भी नजर आएगी, क्योंकि आज का दौर सबसे ज्यादा झूठ बोलने वाले राजनेताओं से ही है इस कविता के माध्यम से मैं यह समझाना चाह रहा हूं कि आप अगर सच के साथ रहेंगे हमेशा तो आप कभी डरेंगे नहीं, कभी झुकेंगे नहीं, और कभी हारेंगे भी नहीं, झूठ की बुनियाद सिर्फ सीमित समय तक रहती है एक ना एक समय पर उस बुनियाद में दरारें पढ़नी शुरू हो जाती हैं, और अंत समय तक आते-आते वह बुनियाद इतनी कमजोर हो जाती है कि सच के सामने टिक नहीं पाती, हम परिवार में समाज में कहीं ना कहीं झूठ जरूर बोलते हैं, अगर वह झूठ किसी को नुकसान ना दें तो चलता है और दूसरी तरफ अगर आपने उसी छूट का फायदा उठाकर दूसरे का हक चुराने की कोशिश की तो उसका परिणाम आपको आने वाले समय में अपने आप मिल जाएगा,
सच कही छुपता नहीं है, सच को आप कितना भी दबा ले पर वह सच किसी ना किसी के सामने जरूर आएगा और सच जब सामने आता है तो उस इंसान को गहरा जख्म दे जाता है, जो झूठ बोलकर दूसरों के सच को दबाते हैं,
आपसे बस यही अनुरोध है कि आप हमेशा सच बोले सच के साथ रहे और झूठ का उतना ही प्रयोग करें, जितना किसी के हित में हो, अगर आप दूसरों का नुकसान करेंगे झूठ बोलकर तो कर्मा (KARMA) आपको भी नसीब होगा !
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