मैं देखूं जिधर से मैं जाऊं उधर से
पहचानू ना तुझको उस परछाई के डर से
ये परछाई मेरी ये परछाई तेरी
ये छाई अंधेरी ये छाई है पहरी
ये तेरी है परछाई मेरी है परछाई
भेदभाव न कर तू ये सबपर है छाई
ये छाया अंधेरा ये छाया धनेरा
इस अंधेरे ही अंधेरे में बनाया बसेरा
बसेरा है तेरा बसेरा है मेरा
छाया अंधेरा नहीं कोई परछाई का घेरा
उजली किरण का फिर आया सवेरा
ये परछाई का साथ फिर से है रह रहा
ये पीछा ना छोड़े उस ओर मोड़ें
जहां मैं चलाना जहां में रुका ना
डराए ये मुझको ये रातों में
दिन के उजालों में बातों में
ढूंढे ये मुझको खोजें ये मुझको
जहां भी छुप जाऊं दिख जाए मुझको
ये डर परछाई का घर है जमाना हंसे बड़ा बेदर्द है
मुझे था विश्वास कभी खत्म होगी ये आस
खत्म हो बस इस परछाई का साथ
ये परछाई है मेरी ये परछाई है तेरी
जिंदगी भर साथ रहे यही बात है कह रही
दोस्ती कर लो तो समय कट जाएगा वरना
पहले भी तू भागता था और अब भी
मुझसे भागता ही रह जाएगा
ये परछाई का साथ टूटे जब लिखने वाला क्या, बोलने वाला क्या
देखने वाला भी टूटे तब
आप में हम सब में एक ना एक डर मौजूद है , हम दिखाते हैं सबको ऐसे की हम डरते नहीं है परंतु जब डर अंदर ही अंदर मौजूद होता है तो वह आपको महसूस कराता है , आपकी कमजोरी परछाई एक ऐसी चीज है जो हमारे साथ साथ चलती है , अगर आप मान लीजिए परछाई आपके साथ ना रहे तो वह कौन सी स्थिति हो सकती है ?
यह तो अपने घर की लाइट बंद हो या फिर दुनिया भर में रोशनी खत्म हो गई हो , और या फिर आप की मृत्यु हो गई हो इस दुनिया में हर जीवित निर्जीव वस्तु की परछाई मौजूद है , मैं आप हम सब इस रोशनी से ही जिंदा है इस कविता के माध्यम से मैं कहना चाहता हूं कि वह व्यक्ति अपने डर से से डरता है , और उस परछाई से पीछा छुड़ाना चाहता हैं , पर वह किसी भी दिशा में दौड़ता है परछाई उसके साथ सदैव रहती है लोग उसका मजाक बनाते हैं , क्योंकि वह एक परछाई से डरता है
आखिर में परछाई की तरफ से कुछ शब्द मैंने लिखें , जिसमें वह उस व्यक्ति को समझा रही है कि आखरी समय तक साथ में रहना है तो डरना क्यों और परछाई का साथ तो तब टूटेगा ना जब इस दुनिया के बंधन से वह इंसान छूटेगा
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