ना जाने खुद को यू ,जिंदगी से चिड़ा है तू
रातें ये बातें ये लोग सुनाते हैं,
बुरी नजर ये पहले लगाते हैं
ये नजर लगाते हैं बद्दुआ मिलाते हैं
जलने की बू आ रही है क्योंकि,
लाश अंदर ही अंदर से जली जा रही है
ये इंसान है, हैवान है जितनी भी पहचान है,
इसकी पहचान है तभी तो ये इंसान है
ये कलयुग का वासी है, पृथ्वी का निवासी है
अंत से ना डरे है ,
विश्वास ही नही इसे भगवान पे,
क्यों रोज़ रोज़ मरे ये,
ये पापी है, पापी है पृथ्वी का निवासी है,
ये खुद को ना माने, किसी को ना पहचाने
गुजरे हुए जमाने, फिर भी ना माने,
ये दर्द ना पहचाने, गमो को ना जाने
अधर्मी का रूप है सुंदर हो कर भी कुरूप है
डरता डराता है अधर्म से डराता है
धर्म को छुपाता है
पाप पुण्य का खेल चला जाता है
ये जीतता है जाता है , पर अंत समय जब आता है
ये खाली हाथ ही जाता है
आज का इंसान समाज में बहुत बदल चुका है , जलन द्वेष घृणा घमंड लालच यह स्वभाव मनुष्य के अंदर गहरे होते चले जा रहे हैं , और इसमें वह दूसरों को ही चोट पहुंचाता जा रहा है , हैवानियत की सीमाओं को लांगता चला जा रहा है, इंसान होकर इंसान की कद्र करना भूलता जा रहा है.
यह कलयुग के आने के बाद से ही मनुष्य के अंदर यह स्वभाव शुरू हो चुका था, और आज का दौर देख लीजिए कि एक मनुष्य दूसरे मनुष्य के लिए ही खतरा बन चुका है, समाज अब रहने योग्य नहीं बचा है !
ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें
एक टिप्पणी भेजें
if you give some suggestion please reply here