ना मेरे जीवन की कीमत है, ना आपके जीवन की कीमत है, तो कीमत किन लोगों की जीवन की होती है?
अमीर लोगों की, नेताओं की, व्यापारियों की, अभिनेताओं की, और इन लोगों की जीवन की कीमत क्या है, क्या उन्होंने समाज के लिए कुछ काम किया है, जिन्होंने किया है वह याद रहते हैं पर जिन्होंने जीवन में कुछ नहीं किया है, उनका जीवन कीमती क्यों?
कीमत से मेरा मतलब है, उस इंसान को एक आम आदमी से ऊंचा दर्जा देना, हम गुलाम हमेशा रहेंगे, अपनी सोच से भी, अपने कामों से भी,
कभी इतिहास के पन्ने खोल कर देखें है आपने, जितने भी इतिहास में राजाओं के जिक्र है, उनकी सेना के सैनिकों के नाम किसी को याद नहीं रहते, हर कोई यही समझता है कि उस राजा ने ही उन सब को हराया है, पर उसके पीछे जितनी सेना होती है उसमें हर एक योद्धा का योगदान हमेशा रहता हैं, पर कुछ ऐसे भी लोग थे जो इतिहास के पन्नों में राजाओं से ज्यादा मशहूर हो गए, जैसे तेनालीराम, बीरबल, तानसेन , और ऐसे अनेक लोग हैं, जिन्होंने अपना नाम इतिहास के पन्नों में हमेशा के लिए लिख दिया, कई लोग तो इनके नाम से ही राजाओं के नाम पहचानते हैं,
आज के दौर में मनुष्य अपनी भागदौड़ में बस इतना व्यस्त हो चुका है की उसे समय ही नहीं मिलता अपनी पहचान बनाने का, और हम सब गुलाम बन कर रह जाते हैं किसी एक व्यक्ति के पीछे, आपको कभी महसूस नहीं होता, लोग अपना अस्तित्व भूल चुके हैं वे बस एक शरीर को ढो रहे हैं, उनके जीवन में कोई लक्ष्य है ही नहीं, क्योंकि उनका अस्तित्व है ही नहीं,
वे लोग आपको महसूस होंगे जैसे चाबी भरे हुए खिलौने, जो रोजाना वही काम दोबारा से करते हैं, जिंदगी जीते हैं और मरते हैं, उनके विचारों में मानसिकता में विकास नहीं हो पाता है, और इसका मूल कारण कई लोगों में अनपढ़ता मुख्य वजह है, जो पढ़े लिखे हैं वह भी कहीं ना कहीं व्यस्त हैं, कोई कुछ जानने को इच्छुक नहीं है, वे बस इस शरीर के अंदर खुद को ढो रहे हैं, शारीरिक जरूरतें पूरी करना यही बस इंसान की मानसिकता बन चुकी है,
हम यह नहीं जानना चाहते कि ब्रह्मांड क्या है, क्योंकि हम अपने ही छोटे-छोटे और सवालों में उलझे हुए रहते हैं, एक बार आप शांति से बैठ कर बातों पर विचार करिए उन चीटियों के झुंड बारे में सोचिए जो हमेशा एक ना एक काम में लगी रहती हैं, उन जानवरों के बारे में सोचिए जो रोज खाना खाकर सो जाते हैं, हम भी इनके जैसे ही बन चुके हैं हमारी खुद की मानसिकता इतनी ज्यादा छोटी हो चुकी है कि हम सवाल पूछना ही छोड़ चुके हैं,
घमंड द्वेष जलन भावना ऐसे अनेक इंसान के हाव भाव है जिनकी वजह से मनुष्य अपने आप में खोया सा रहता है, इस जीवन की कदर करना हमें नहीं आता, क्योंकि जब हमें इसकी कदर करनी होती है तब हम अपने जीवन में बहुत व्यस्त रहते हैं, परिवार, आर्थिक स्थिति, दोस्त, पैसा इन सब में इंसान खोया सा रहता है, और जब उम्र का पड़ाव खत्म होने लगता है तब उसे एहसास होता है कि उसने अपना पूरा जीवन व्यर्थ की चीजों में बर्बाद कर दिया, उसके पास चंद समय होता है अपना जीवन जीने का जिसमें उसे सबसे ज्यादा परेशानी और डर मौत का ही रहता है, और वह समय भी उसका ऐसे ही डर से खत्म हो जाता है ,
100 साल की उम्र एक सीमा है, कई लोग यहांतक पहुंच नहीं पाएंगे और कुछ लोग अगर पहुंच भी गए तो उनकी मानसिक और शारीरिक स्थिति सही नहीं रहती, आपसे मैं कहता हूं व्यस्त रहिए ठीक है पर अपना नाम कम से कम उन लोगों की तरह इतिहास में दर्ज करा जाए जिससे आगे पढ़ने वाले भी आपका नाम याद रखें, आपने अपनी जिंदगी में जितने भी अच्छे काम किये होंगे उन सभी कामों से आपका नाम सबसे ऊपर दर्ज होगा, जनता उन लोगों को हमेशा याद रखती है जो समाज की भलाई के लिए अपने जीवन का त्याग कर देते हैं
वे खुद की सुख सुविधाएं भूल जाते हैं, और हमेशा ध्यान एकाग्र करते हैं दूसरों की सेवा में,
देश की स्वतंत्रता में, और जितने भी प्रधानमंत्री हुए हैं, हम उनमें से कुछ चुनिंदा लोगों को ही याद रख पाते हैं, ऐसा इसलिए है क्योंकि जिसने समाज को बदलने की कोशिश की होगी, और लोगों के अंदर बदलाव लाने की कोशिश की होगी, वे हमेशा जहन में कहीं ना कहीं बसे रहते हैं, आप कहीं भी हो, चाहे आप अमीर हो या गरीब आपकी पहचान आपको अमर कर देती है, कुछ लोग गलत तरीके से अपनी पहचान बनाते हैं, जो कि जुर्म की राह पर चलते हैं, और कुछ अच्छाई के रास्ते, पर दोनों को अपने स्तर पर बहुत मेहनत करनी पड़ती है, परंतु अगर आपकी छवि अच्छी होगी, और अपने समाज में कुछ ना कुछ कार्य किया होगा तो भविष्य में भी लोग आपकी बातें दोहराते रहेंगे, अगर आप जुर्म की राह पर चले गए तो आने वाले भविष्य में आप जैसा कोई होगा नहीं, और ना बनना चाहेगा, पर आज का समय कुछ और है, आजकल उन गुनहगारों के ऊपर फिल्में उनकी कहानी को लोग ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, इसका मतलब यह है कि वह उन जैसा बनना चाहते हैं, और इसी से उठता है देश में अपराध जगत का सुनहरा भविष्य, यह विश्व के हर देश में होता है, उस अपराधी की कहानी में लोग अच्छाई ढूंढने लगते हैं, और उसके द्वारा किए गए हर जुर्म को वह बदले की भावना के रूप में देखते हैं, ऐसी मानसिकता एक तरह से बढ़ती जा रही है, और धीरे-धीरे करके इंसान इन चीजों में खोता जा रहा है, देश के हर व्यक्ति को बस एक लाश समझना हमने सीख लिया है, उनकी सोच में बदलाव नही आ पा रहा है, उन्हें जो दिखाया जा रहा है वो उसी में ढलता जा रहा है।।
ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए हमसे जुड़े रहे धन्यवाद
एक टिप्पणी भेजें
एक टिप्पणी भेजें
if you give some suggestion please reply here