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खोखले शिक्षण संस्थान Hollow Educational Institute

 
विश्व में अनेक प्रसिद्ध शिक्षण संस्थान है जो छात्रों का भविष्य निर्धारित करते हैं, कुछ शिक्षण संस्थानों का मूल लक्ष्य सिर्फ छात्रों को शिक्षा देना नहीं होता बल्कि उन छात्रों को आर्थिक और मानसिक रूप से इतना कमजोर कर देना होता है कि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता अपने भविष्य को तराशने के लिए वे उन शिक्षण संस्थानों में सिर्फ सजा और यातनाएं झेल रहे होते हैं, मेरी डायरी का सिर्फ मूल लक्ष्य यह है कि उन कड़वी कड़वाहट को बाहर निकालना जिनसे हम लोग अवगत नहीं है या फिर अवगत होकर भी हम उन विषयों को नजरअंदाज करते हैं, क्या हमारे सारे शिक्षण संस्थान सही में अंदर से खोखले हो चुके हैं ?

 शिक्षा जो कि सबका अधिकार है, परंतु इतिहास से लेकर आज तक शिक्षा उन्हीं लोगों को मिलती आ रही है जो कि आर्थिक रूप से सक्षम है और शिक्षा ग्रहण करने के काबिल है, कई काबिल लोग इन बातों से डरते भी है कि अगर सभी को मुफ्त में शिक्षा और ज्ञान अगर उनके विषयों के अनुरूप उन्हें मिलते जाएं, तो यह खतरनाक होगा उन लोगों के लिए जो कि वहां पर अपना आधिपत्य जमाए बैठे हैं, और तभी से शुरू होता है शिक्षा का कारोबार, 
आप जितना ज्यादा ज्ञान अर्जित करना चाहते हो आपको उतना ही ज्यादा खर्च करना पड़ेगा, 

 क्या बचपन से ही हमारे अंदर उच्चतम पदों पर बैठने के लिए हमारे दिमाग को उसी तौर पर तैयार किया जाता है?,  क्या हम डिमांड और सप्लाई की तर्ज पर खरा नहीं उतर पा रहे हैं?,  उदाहरण के तौर पर एक पढ़ा-लिखा छात्र जिसके पास कोई उच्चतम या फिर अधिक श्रेणी की डिग्री हो, क्या वह व्यक्ति एक चपरासी, सफाई कर्मी, या किसी निचले स्तर की नौकरी का कार्य करने के लिए मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर सकेगा ?,  वहां वह व्यक्ति हमेशा उन लोगों से अपने आप की तुलना करता है,  जो लोग पहले इससे इन कार्यों में कार्यरत हैं,  यहां डिमांड सप्लाई का अर्थ यह है ज्यादातर लोग शारीरिक रूप से किए जाने वाले कार्यों की तुलना में किसी ऑफिस में बैठकर काम करने को ज्यादा तवज्जो देते हैं, 
 और इसका असर आपको धीरे-धीरे करके कई शहरों में और कई गांवों में दिखाई दे रहा होगा, जरूरत के हिसाब से मजदूरों की कमी होना जिससे कि उन मजदूरों की आमदनी में बढ़ोतरी होना, कई लोग कई सालों से उन्हीं नौकरियों में बगैर पदोन्नति के लगातार काम किए जा रहे हैं, उनकी तनख्वाह में वृद्धि नहीं हुई,  वहीं दूसरी तरफ मजदूरों को मिलने वाले कार्यों में बढ़ोतरी होने से उनकी प्रतिदिन की कमाई में भी पदोन्नति होती चली गई,  इसका कारण सिर्फ एक है हमारी मानसिकता में शिक्षण संस्थान सिर्फ उच्चतम पदों के हसीन सपनों का मायाजाल बनते हुए नजर आते हैं, 

 अगर आप छात्र हैं स्कूली शिक्षा अपने ग्रहण की है तो आप इतने काबिल हैं कि आप किसी भी कार्य को समझने और परखने की क्षमता आप में है,  परंतु हमारे अंदर एक ऐसा बीज बो दिया जाता है जिससे कि हमारी मानसिकता को इतना विकसित कर दिया जाता है जिससे कि हम उन नीचले स्तर की नौकरी पर ध्यान ना दें, 
 वैसे तो शिक्षा सभी को मुफ्त में मिलनी चाहिए परंतु इस शिक्षा का महत्व और दायरा सिर्फ सीमित रह चुका है यह सिर्फ उन्हीं लोगों को पहुंचाई जाती है जो कि इसके लिए एक तरह से सक्षम है,  हम छात्रों के अंदर ऐसी मानसिकता क्यों नहीं विकसित कर पा रहे हैं जिससे कि वह आने वाले भविष्य में और लोगों को भी रोजगार प्रदान कर सकें?, 
  क्या कुछ शिक्षण संस्थान सिर्फ एक तरह से आय का जरिया बन चुके हैं जो कि छात्रों के माता-पिता की मेहनत की कमाई को सिर्फ तनख्वाह मानते हैं,  दरअसल शिक्षण संस्थानों को एक ऐसी व्यवस्था तय करनी चाहिए, जो छात्र जिस विषय में पढ़ना चाहता हो उसे उस विषय को पढ़ने के लिए अवसर देना चाहिए, आज नहीं पर भविष्य में ऐसा जरूर होने वाला है, 
 अगर विज्ञान का छात्र विज्ञान में रुचि नहीं रखता है और वह चाहता है कि वह व्यापार जगत की चीजों को सीखें,  तो उसे अवसर देना चाहिए,  परंतु आज के दौर में ऐसा है कि जिन छात्रों के पास जिस विषय में डिग्रियां हासिल है वह सिर्फ उन्हीं विषयों में आगे अपनी पढ़ाई जारी रख सकता है,  इसका अर्थ यह है कि वह छात्र चाह कर भी वह दूसरे विषयों की और जिनमें उनका रुझान है वह उन विषयों को चयनित करके नहीं पढ़ सकता,  उदाहरण के तौर पर किसी छात्र को जीवविज्ञान(biology),  व्यापार जगत(business world),  भूगोल(geography),  इन विषयों में रूचि हो परंतु वह चाह कर भी इन विषयों को एक साथ नहीं पढ़ सकता, 
 अगर आप यह समझ कर किसी शिक्षण संस्थान में शिक्षा ग्रहण करने के लिए जा रहे हैं कि अगर वह शिक्षण संस्थान प्रसिद्ध है उसकी ख्याति भरपूर है तो आप भी वहां से कुछ ना कुछ बनकर जरूर निकलेंगे, तो शायद आप खुद से ज्यादा निर्भर आप उस शिक्षण संस्थान के ऊपर हो, कई छात्र विदेशों में भी पढ़ने के लिए जाते हैं और इसका मूल कारण यह होता है कि शिक्षण संस्थानों के द्वारा मोटी फीस वसूल करना, जैसे कि सबसे ज्यादा महंगी पढ़ाई मेडिकल के छात्रों के लिए है,

 छात्रों का रुझान और भीड़ का एक तरफ होना, अर्थात अगर कुछ छात्र किसी नए विषय में सफल हो गए,  तो वह बनते हैं प्रेरणा स्रोत उन नए छात्रों के लिए जो कि अपने पीछे एक बहुत बड़ी भीड़ को साथ लेकर चल रहे हैं,  उन्हें अपना भविष्य निर्धारित नहीं दिखता है वह बस यही समझते हैं कि  यहां से हमारा भविष्य किसी न किसी दिशा की ओर जरूर जाएगा, 
 क्या छात्र उस काबिल है जो खोखले शिक्षण संस्थानों से डिग्री हासिल करके नौकरियों की तलाश में जगह-जगह घूम रहे हैं,  बदलती परिस्थिति और बदलती तकनीक में जहां हम एक और तकनीक पर निर्भरता ज्यादा दिखा रहे हैं,  वहीं दूसरी और और हम मानव जीवन में भी दिन-प्रतिदिन उसकी जरूरतों और सहूलियत के हिसाब से उन्हें सेवाएं दे रहे हैं, अगर आप छात्र हैं या छात्र नहीं है फिर भी अपने अंदर एक बार जरूर विचार विमर्श कीजिए, क्या उस नौकरी के काबिल है जिस नौकरी को पाने के लिए आप दिन रात मेहनत का दिखावा करके, डिग्री हासिल करके,  आप साक्षात्कार(interview) की तैयारी शुरू कर देते हैं, 

 क्या गलती उन छात्रों की नहीं यहां गलती उन कुछ चुनिंदा खोखले शिक्षण संस्थानों की है, जो सिर्फ और सिर्फ छात्रों के भविष्य के साथ खेल रहे हैं, भविष्य में होने वाली प्रतिस्पर्धा और आने वाली विकसित तकनीक से वह खुद अवगत नहीं है, और वह यही चाहते हैं कि छात्रों से उनकी मासिक आय बस बनती रहे, शिक्षण संस्थान सिर्फ आप को शिक्षित करने में मददगार साबित हो रहे हैं, वे इस बात की कोई गारंटी नहीं दे सकते कि आप आने वाले भविष्य में सफल होंगे या नहीं,
 
 कलम तलवार से अधिक बलवान है
 जब तक आप शिक्षित नहीं होंगे आप खुद के विचार नहीं  सृजित कर पाएंगे, ज्ञान अभ्यास से भी आता है ज्ञान रचना से भी आता है, ज्ञान हर तरफ है बस उसे समझने और ग्रहण करने की परख हमारे अंदर होनी चाहिए,
  विश्व में कई सारे ऐसे शिक्षण संस्थान है जो कि छात्रों के अच्छे भविष्य को तय करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, पर कुछ चुनिंदा शिक्षण संस्थान उनकी छवि को धूमिल करते हैं,

 ज्ञान अगर आप जितना ज्यादा बांटोगे उतना ज्यादा आप ज्ञान हासिल भी करोगे, शांत स्वभाव मनुष्य की पहचान बतलाता है कि वह ज्ञान अर्जित करने के लिए कितना हतोत्साहित है,

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