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एक बेबस पत्रकार An helpless journalist

(एक पत्रकार के विचार )


मैं भी बेबस हूं,  लाचार हूं, बेकार हूं 
सरकार का करता गुणगान हूं 
परिवार की खातिर देश से झूठ बोलूंगा 
पैसों के दम पर ही अपना मुंह खोलूंगा 
जनता अनजान रहे, जो चाहे मुझे कहे 
सारे जुर्म यही सहे,  हम तो बस देखते रहे 

मैं सरकार का मुलाजिम हूं,  गरीबों का जालिम हूँ 
गरीबों से मुझे क्या मिल पाएगा ?
"अमीरों की बातें करूंगा तभी तो 
अमीरों का एहसास मिल पाएगा"
सरकारों के जुल्म से गरीब परेशान है 
बकवास करने वालों पर ही मेरा ध्यान है 

मैं बदलता छवि हर उस इंसान की 
यह पत्रकारिता की ताकत है 
गुणगान करें सिर्फ चुनिंदा इंसान की 
मैं एक पत्रकार हूं, सवाल पूछना मेरा काम है 
सरकार जवाब दे या ना दे 
विपक्ष से सवाल पूछना ही मेरा काम है 

जो सत्ता में बैठे हैं घमंड में रहते  हैं 
इनसे  सवाल है, पर विपक्ष का भी बवाल है 
मैं सवालों को चुनता हूं चुनिंदा रखता हूं 
प्रवक्ताओं से सवाल है, बिछाया हुआ एक जाल है
सवालों की बौछार से, विपक्ष घायल है हर एक वार से
सत्ता पक्ष से नरमी बरतता हूं 
पैसे उन्हीं के दिए हुए जेब में रखता हूं  

मैं एक पत्रकार हूं मैं भी बेबस और लाचार हूं 
आपके दिमाग से खेलने की ताकत मुझी में है
चुनाव से पहले मन बदलने की ताकत मुझी  में है  
मैं चाहूं जो जीते मैं चाहूं जो हारे 
सत्ता के गलियारे रोज मेरा नाम पुकारे 

अभिमानी अहंकारी नहीं हूं मैं 
जितना मिल जाए राजनेताओं से, बस उतना "लालची हूं मैं" 
खुद की तरक्की के लिए देश से भी झूठ बोलूंगा 
जो सच होगा उसमें भी झूठ घोलूंगा 

गरीब, बेरोजगार सभी परेशान है 
आवाजों  के शोर में, उसकी आवाज बेजान है
प्रवक्ताओं से वह भी परेशान है 
जो करे हमेशा सरकार का गुणगान है 

मेरी पत्रकारिता पर संदेह  ना करना 
क्योंकि कई लोग इससे अनजान हैं 
नयी  चुनावी तारीख का ऐलान हो चुका है 
सत्ता पक्ष, विपक्ष तैयारी में खो चुका है 
यह समय मेरे लिए एक मौका होता है 
जनता के लिए सिर्फ एक धोखा होता है 

आप लोगों की आंखें शायद कभी ना खुले 
हम ऐसे ही जीते रहे, और आप जुल्म सहते रहे  
मैं भी बेबस और लाचार हूं, फिर भी मैं एक पत्रकार हूं  ! 



आज का पत्रकार चाटुकार बन चुका है, उसे सिवाय चाटुकारिता के कुछ नहीं दिखता, गरीब, बेरोजगार आर्थिक मंदी देश की सुरक्षा यह मुद्दे कहीं  गायब से हो गए, बात होती है तो सिर्फ कट्टरपंथी सोच की धर्म की विचारधारा की हमें ऐसे पढ़ाया जा रहा है जैसे हम कोई छोटे बच्चे हैं, यह समझते हैं कि इस तरीके से सरकार की छवि हमेशा अच्छी बनी रहे, लोगों का भरोसा एक दूसरे से उठ जाए पर सरकार से ना उठे, आप मैंने हम सबने विकास के नाम पे वोट दिया था, जिस विषय में कोई धर्म जाति नहीं होती तो आखिर वो मुद्दे ख़त्म हो चुके है? 

क्या हम विकसित देश बन चुके है, मंदिर के नाम पे सालो से राजनीति चल रही है, जब घर में रोटी नही होगी तो इंसान के काम मंदिर भी नही आएंगे, आप समझने की कोशिश नही करना चाहते या समझ नहीं पा रहे देश की स्तिथि बदतर हों रही है, आर्थिक स्तिथि, बेरोज़गारी, ये पुरानी सरकारो की देन है, पर जो सरकार मौजूद है वो क्या कर रही है कोई पूछ रहा है? 
आप शांत हो, मीडिया शांत है, सरकार शांत है इस मुद्दे में तो समझ ले आपकी सुध लेने वाला विपक्ष दफ़न हो चुका है ।। और उसे आपने ही दफनाया है, विपक्ष कोई भी हो मज़बूत होना चाहिए, पर यहां कोई विपक्ष नही आप भी नही।।



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