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अधूरा राज़ Adhoora Raaz



स्नेहा और आकाश की शादी हो चुकी है और वे अब दिमारपुर शहर से लगभग 100 किलोमीटर दूर एक गाँव जा रहे हैं, जिसका नाम कौला है, जो आकाश की दादी का घर है। आज उनका यही प्लान है कि वे गाँव कौला की ओर अपनी गाड़ी में जाएंगे। स्नेहा और आकाश रास्ते में आपस में बातचीत करते हुए... 
स्नेहा - आकाश, आप दादी की काफी तारीफ करते हो, पर दादी हमारी शादी में क्यों नहीं आईं? 
आकाश - अरे स्नेहा, कुछ दिनों से गाँव में अजीब घटनाएं हो रही हैं, और अभी कुछ दिन पहले पड़ोसी के गाँव में भी एक पेट्रोल पंप पर किसी की हत्या हुई थी, और इसी कारण मैंने दादी को मना किया था आने के लिए। 
स्नेहा - तो क्या वो पेट्रोल पंप पर जो हत्या हुई थी उसका कतिल अभी तक पकड़ा नहीं गया क्या? 
आकाश - हां, पकड़ा तो गया है पर उसमें और भी लोग शामिल हो सकते हैं, तो जब ऐसी घटनाएं गाँव में हो रही होती हैं तो किसी का अकेला शहर जाना सुरक्षित बिलकुल नहीं है। मैंने तो इस केस को यूट्यूब पर देखा तब समझा कितना गंभीर मुद्दा है यह। 
स्नेहा - मैं भी देखती हूं केस का नाम क्या है? 
आकाश - "पेट्रोल पैराडॉक्स"। 
स्नेहा अपने मोबाइल का नेटवर्क देखती है और आकाश से कहती है, "जी, आपकी दादी के गाँव के रास्ते पर तो एक तो नेटवर्क नहीं आ रहा और दूसरा कोई सामने से गाड़ी भी नहीं आ रही, कितना सुनसान रास्ता है ये।" आकाश - हाँ, तुम सही कह रही हो, मैं भी बोर हो जाता हूँ जब ऐसे रास्ते पर गाड़ी चलाता हूँ। 

तभी एक मॉड पर आकाश गाड़ी रोक देता है। "वो देखो, सामने पेड़ गिरा पड़ा है और 3-4 लोग उसे हटाने में लगे हैं," उस व्यक्ति ने आकाश को इशारे से मदद के लिए बुलाया। आकाश जैसे ही दरवाजा खोलता है, स्नेहा आकाश से धीमे से कहती है... 
स्नेहा - ये अज्ञात लोग हैं, तो आप यही रहिए, ये खुद कर लेंगे, और बाकी कोई दूसरी गाड़ी आने तक वेतन कर लेंगे। 
आकाश – यार, अभी शाम के 6 बज रहे हैं और अगर ये पेड़ जल्दी नहीं हटा तो हमें वापस जाना पड़ेगा और दादी का घर बस यहां से 2-3 किलोमीटर ही तो है। 
और आकाश गाड़ी का दरवाजा बंद करके उनकी मदद करने लगता है। स्नेहा अंदर से आकाश को उनकी मदद करते हुए देख रही होती है। कुछ देर में ही वे सभी मिलकर उस पेड़ को हटा देते हैं और वे लोग आकाश से बात करते करते गाड़ी के पास पहुँच जाते हैं, आकाश गाड़ी का दरवाजा खोलकर। 
स्नेहा ये हमारे ही गाँव से हैं और मेरी दादी को भी अच्छी तरह से जानते हैं। मिलो इनसे, ये हैं दीपक, कपिल, मनोज, और मोहित, ये चारों भाई हैं और इनमें सबसे बड़ा कपिल है। 
तभी कपिल बीच में बात कट के बोलता है, नई शादी है, अच्छी बात है, एन्जॉय करो और वह अपने भाई को इशारे करके... अरे मनोज काफी पैसा है इनपे, हम तो शहर जाकर पैसा कमाने की सोच रहे थे पर भाई इधर तो पैसा भी और हसीना भी दोनों फ्री मिल गयी। आकाश इससे पहले कुछ समझ पाता है, पीछे से आकाश पर चारों भाई चाकू से हमला कर देते हैं। 
स्नेहा ये सब देखकर बहुत डर जाती है और चिल्लाते हुए कहती है... कृपया उन्हें छोड़ दो, मैं सारे गहने और जितना भी पैसा है आप सभी रख लो, छोड़ दो उनको। 
कपिल – अगर तुम दोनों यहां से बचकर चले गए तो हम तो पकड़े जाएंगे, पहले इसे शांत करने दे फिर तुझे भी शांत कर देंगे। 
तभी मोहित कहता है... भाई-भाई रुको, पहले हमें इसके साथ खेलना भी तो है, उसके बाद इसे भी शांत कर देंगे, वैसे भी इस जंगल में तो कोई आएगा नहीं और ऊपर से अंधेरे में मौके का फायदा आज उठा लेंगे। 
स्नेहा सोचते हुए “अगर अब मैं यहां से गाँव तक पहुँच जाऊं तो शायद कोई मदद हमें मिल जाए और आँखों में आंसू लिए वह गाड़ी का दूसरी तरफ से दरवाजा खोलकर जंगल की तरफ भागने लगती है। 
कपिल मोहित से कहते हुए... अरे पकड़ेगा नहीं उसे, वह देख, वह भाग रही है, इसे यही छोड़, कुछ घंटों में यह खुद-ब-खुद मर जाएगा, चल। और वे चारों उसका पीछा करने लगते हैं... 

दीपक और मनोज तेजी से उसके पीछे भागते हुए... कपिल भाई, टेंशन मत लो हम पकड़ के लाते हैं, आप लोग बस पीछे ही रहना... वही दूसरी तरफ स्नेहा जंगल में भागते हुए सोचती है, "काश कोई तो मदद के लिए मिल जाए, और उसे "दूर से जंगल के बीचों-बीच एक रौशनी दिखाई देती है... 
पीछे से मनोज चिल्लाते हुए... "अरे मैडम, आप भी थक जाओगी और हम भी, कहां तक भागने का इरादा है, देखो हम दो ही हैं इधर... तबही दीपक को भी नीली रौशनी दिखाई देने लगती है... और वह मनोज से कहते हुए... "अरे भाई, ये तो गाँव में बुजुर्ग लोग जो चौपाल पर नीली रौशनी की कहानी सुनाते हैं, कहीं वह तो नहीं... 
मनोज – "तू डर रहा है क्या, ऐसा कुछ नहीं है, किसी की टॉर्च ऑन रह गई होगी... ये भी इधर ही शायद गई हो चल... और वे दोनों भी उसी दिशा में चल पड़ते हैं... 
स्नेहा जब वहाँ पहुँचती है तो देखती है कि किसी का टॉर्च पेड़ की तेहनियों में फंसा हुआ है... जिसे देखकर वह वही बैठ के रोने लगती है... कोई मदद करने वाला नहीं है यहाँ कोई हमारी मदद नहीं कर पाएगा... तभी स्नेहा देखती है कि जिस पेड़ की तेहनियों पर टॉर्च लटकी हुई है उस पेड़ पर एक आदमी का चेहरा जैसा बना हुआ है, और जैसे ही वह उसके करीब जाती है, उसे महसूस होता है कि वह पेड़ कुछ कह रहा है... "तुम मेरी हो... तुम मेरी हो... तुम मेरी हो," यही शब्द वह पेड़ की धीमी-धीमी आवाज में कहता है... तभी वहां मनोज और दीपक पीछा करते हुए पहुंच जाते हैं और मनोज कहता है, 
"अब आई ना तुम सही जगह इधर रौशनी भी खूब है, चलो भाई के आने से पहले हम अपना काम कर लेते हैं..." स्नेहा डर से चिल्लाते हुए जोर से कहती है, "मैं तुम्हारी हूँ, हाँ तुम्हारी हूँ..." 
मनोज और दीपक ये सब सुनकर हँसते हुए कहते हैं, तुम मेरी हो या इसकी, सही सही बताओ, यार, दिनेश लगता है ये पूरी तूट चुकी है, अब ये किसी के भी साथ रहना पसंद करेगी। 
और तेज हवा चलनी शुरू हो जाती है, उस पेड़ में से वह पूरा लकड़ी से बना इंसान बनकर बाहर आता है और स्नेहा से कहता है, "तुम बस मेरी हो..." स्नेहा उसे देखकर और ज्यादा डर जाती है और आगे की ओर जंगल में भागने लगती है। वही दूसरी तरफ मनोज और दीपक ये देखकर डर जाते हैं और चिल्लाने लगते हैं, जिसे सुनकर कपिल और मोहित भी कुछ ही मिनट में वहां पहुंच जाते हैं। 

कपिल उस लकड़ी से बने आदमी को देखकर, "अरे, ये क्या बवाल है, मुझे तो यकीन नहीं हो रहा... अरे, वह भाग रही है दूसरी तरफ से पीछा कर उसका... ऐसे तो गाँव में पहुंच जाएगी वह..." मोहित दूसरी तरफ से भागते हुए, जैसे ही वह थोड़ा आगे बढ़ता है, फिर वही रुक जाता है... और कहता है, "भाई, इस हरामी ने नुकीले कांटे बिछा रखे हैं इधर, लकड़ी के... और एक बड़ा सा लकड़ी का टुकड़ा मोहित के पैर के आर-पार हो गया था।" कपिल उस पुतले से कहते हुए, "अबे, हमने तेरा क्या बिगाड़ा है, हमको जाने दे भाई। 
लकड़ी का पुतला - "वो मेरी है सिर्फ मेरी।" मनोज पुतले से कहते हुए, "अच्छा भाई, तू रखले उसको, और धीरे से कहते हुए कपिल को एक बार इस पुतले से पीछा छूट जाए, फिर उस... वह अपने शब्द पूरे भी नहीं कर पाता और एक लकड़ी का बड़ा सा टुकड़ा उसके पेट के आर-पार हो जाता है,। कपिल ये देखकर समझ जाता है कि ये कोई साधारित लकड़ी का पुतला नहीं, ये आसपास के वातावरण को प्रभावित करने की शक्ति रखता है, और वह दीपक को कहता है, "भाई भाग इनको यही छोड़, अपनी जान बचा बस और वह वापस उसी रास्ते की ओर भागने लगता है, जहां से वह स्नेहा का पीछा करते हैं। थोड़ी दूर भाग के हम एक पेड़ के नीचे बैठ के थकावट दूर करने लगते हैं, तभी उसी लकड़ी के पुतले की आवाज आती है... "तुम्हारे भाई ये रहे और ऊपर से 2 काटे हुए सिर नीचे गिरते हैं," जिसे देखकर वे बहुत डर जाते हैं और जैसे ही वह भागने के लिए उठते हैं, वह दोनों देखते हैं कि पेड़ की तहनियां उनको पेड़ के अंदर खींच रही हैं... और कुछ ही मिनट में वे दोनों भी मारे जाते हैं... 
स्नेहा कुछ घंटों में जंगल पार करके जैसे ही गाँव में पहुंचती है, लोगों से मदद के लिए उनके साथ चलने को कहती है, जब गाँव का एक व्यक्ति पूरी बात सुनता है... फिर कहता है, "अरे बेटा स्नेहा तुम जरूर जंगल में भटक गई होगी, चलो घर चलते हैं, मैं पहुंचा देता हूँ, आकाश की दादी का घर यही पर है... स्नेहा जब आकाश की दादी के घर पहुंचती है, वह देखती है कि आकाश और वह जिस गाड़ी से आ रहे थे वह बाहर ही खड़ी हैं, और अंदर आकाश की दादी आकाश की चोट पर मरहम लगा रही होती है। स्नेहा आकाश को देखकर खुशी से उनसे लिपट जाती है और रोते हुए कहती है, "मुझे उस समय कुछ समझ नहीं आ रहा था इसलिए मैं मदद के लिए... और स्नेहा अपने शब्द पूरे करती है उससे पहले आकाश स्नेहा के कान में कहता है ... 
"तुम सिर्फ मेरी हो..."

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